रणथंभौर दुर्ग ( सवाई माधोपुर )
रणथंभौर दुर्ग राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित है।
इसका निर्माण 994 ईस्वी में चौहान शासक रणथमन देव ने करवाया था। यह दुर्ग रण और थमन दो पहाड़ियों के मध्य निर्मित होने के कारण रणथंभौर दुर्ग कहलाया।
यह दुर्ग तीन श्रेणियों में आता है।
1. वन दुर्ग 2. गिरी दुर्ग 3. ऐरन दुर्ग
उपनाम - दुर्गाधिराज दुर्ग
21 जून 2013 को यूनेस्को ने इस दुर्ग को विश्व धरोहर स्थल में शामिल कर लिया गया
इस दुर्ग का मुख्य प्रवेश द्वार नौलखा दरवाजा है।
रणथंभौर दुर्ग पर सबसे पहला आक्रमणकारी कुतुबद्दीन ऐबक था ।
राजस्थान का प्रथम शाका इसी दुर्ग में हुआ 1301 ईस्वी में हुआ था। उस समय दुर्ग पर आक्रमण करने वाला अलाउद्दीन खिलजी था। रणथंभौर दुर्ग का राजा उस समय राव हम्मीर देव था। हम्मीर देव ने उस युद्ध मे केसरिया किया था और रानी रंग देवी ने जौहर किया था।
राव हम्मीर देव की पुत्री ने पदम तालाब में जल जौहर किया था। यह राजस्थान का एकमात्र जल जौहर था। इस युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति नुसरत खां मारा गया था।
इस युद्ध में राणा हम्मीर के सेनापति रणमल ओर रतिपाल थे।
रणथंभौर दुर्ग में 32 खम्बो की छतरी स्थित है जिसे राणा हम्मीर ने अपने पिता की याद में बनाया था।
खानवा के युद्ध में घायल राणा सांगा को इलाज के लिए इसी दुर्ग में लाया गया था।
इस दुर्ग के भीतर त्रिनेत्र गणेश मंदिर स्थित है। दुर्ग के भीतर ही पीर सदरुद्दीन की दरगाह स्थित है। दुर्ग के भीतर ही जोगी महल, जौरा भौरा के महल और हम्मीर की कचहरी महल स्थित है।
दुर्ग के भीतर विभिन प्रकार के यंत्र रखे हुए थे।
अरर्दा - पत्थरों की वर्षा करने वाला यंत्र
मगरनी - ज्वलनशील पदार्थ को फेकने वाला यंत्र
इस दुर्ग के बारे में विभिन्न प्रकार के कथन कहे गए है।
अमीर खुसरो - आज काफिरों का गढ़ इस्लाम का घर हो गया।
अबुल फजल - अन्य सब दुर्ग नंगे है , यह दुर्ग बखरबंद है।
जलालुद्दीन खिलजी - ऐसे सौ दुर्गों को मैं मुसलमानों के एक बाल के बराबर भी नहीं समझता।
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