राजस्थान के प्रमुख मंदिर
राजस्थान के मंदिरों की प्रमुख शैलिया
1. नागर शैली - यह शैली उत्तर भारत में स्थित मंदिर में पाई जाती है। इस शैली में मंदिर उच्चे चबूतरे पर स्थित होते है। मंदिर के गर्भगृह में एक प्रमुख मूर्ति होती है और उस मूर्ति के चारों ओर परिक्रमा चक्र होता है।
राजस्थान के प्रमुख मंदिर
शीतलेश्वर महादेव मंदिर (झालावाड़)
शीतलेश्वर महादेव का मंदिर राजस्थान में झालरापाटन (झालावाड़) जिले में स्थित है।
यह राजस्थान का पहला तिथि अंकित मंदिर है। यहां से प्राप्त शिलालेख के अनुसार यह मंदिर 689 ईस्वी में बना हुआ इस पर राजा का नाम मिट गया है।
सहस्रबाहु मंदिर ( सास - बहु का मंदिर, उदयपुर )
सहस्रबाहु का मंदिर उदयपुर नागदा में स्थित है। इस मंदिर को सास बहू का मंदिर है। यह भगवान विष्णु का मंदिर है। इसका निर्माण हिंदू शैली पर आधारित है। इसका निर्माण 10 वीं शताब्दी में गुहिल शासक ने करवाया था।
एकलिंग जी का मंदिर (उदयपुर)
एकलिंग का मंदिर उदयपुर में कैलाशपुरी में स्थित है। मेवाड़ के महाराणा एकलिंग जी को अपना राजा मानते थे और खुद को उनका दीवान समझते थे।
इस मंदिर का निर्माण बप्पा रावल ने 8 वीं शताब्दी में करवाया था। इसे लकुलिश संप्रदाय का मंदिर भी कहते है। यह राजस्थान में स्थित लकुलीश संप्रदाय का एकमात्र मंदिर है।
यह राजस्थान में भगवान शिव का सबसे बड़ा मंदिर है। इस मंदिर में चतुर्मुखी शिवलिंग की पूजा होती है। यहां पर फाल्गुन कृष्ण 13 पर महाशिवरात्रि का मेला लगता है।
बाड़ोली के शिव मंदिर (चितौड़गढ़)
बाड़ोली के शिव मंदिर चितौड़गढ़ जिले में स्थित है। यह जगह कोटा जिले के समीप स्थित है। इसका निर्माण हूण शासक मिहिरकुल ने 6 वीं शताब्दी में करवाया था।
यह मंदिर नागर और पंचायतन शैली पर आधारित है।
कंसुआ के शिव मंदिर (कोटा)
कंसुआ के शिव मंदिर कोटा जिले में स्थित है। इस मंदिर के पास में ही एक आठवी शताब्दी का कुटिल लिपि में लिखा हुआ शिलालेख है । यह शिलालेख शिवगण मौर्य का है।
मंदिर के गर्भगृह में काले पत्थर का चतुर्मुख शिवलिंग है। इस मंदिर की खास विशेषता यह को सूर्य की पहली किरण मंदिर में स्थित शिवलिंग पर पड़ती है। यहां पर स्थित भैरव मंदिर की आदमकद मूर्ति स्थित है।
चारचौमा शिवालय (कोटा)
चारचौमा शिवालय कोटा में गुप्तकालिन समय का प्राचीन शिवालय है। कोटा राज्य के इतिहासकार डॉ मथुरालाल शर्मा के अनुसार यह शिव मंदिर कोटा राज्य का सबसे पुराना देवालय है। मंदिर में चतुर्मुखी शिवालय है।
विभीषण मंदिर (कोटा)
कोटा जिले के कैथून में यह मंदिर तीसरी से पांचवी शताब्दी के मध्य का मंदिर है। यहां स्थित मूर्ति धड़ ऊपर तक की है जिसे विभीषण की मूर्ति माना जाता है। कुछ इतिहासकार इसे हनुमान जी मूर्ति मानते है।
श्रीनाथ मंदिर ( नाथद्वारा, उदयपुर)
श्री नाथ जी मंदिर राजसमंद के नाथद्वारा में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1671-72 में मेवाड़ के महाराणा राजसिंह ने करवाया था। यह मंदिर वल्लभ सप्रदाय का सबसे बड़ा मंदिर है।
श्री नाथ जी की मूर्ति मूल रूप से मथुरा में एक मंदिर में वल्लभाचार्य ने की थी। 1669 में औरंगजेब द्वारा मंदिरों को ध्वस्त करने पर तब वहां के पंडितों ने इसे नाथद्वारा लाकर स्थापित किया।
इस मंदिर के अलावा कोटा का मथुराधीश, जयपुर का गोविंददेव जी का मंदिर भी मथुरा से लाई गई मूर्तियों से निर्मित है।
रंगनाथ का मंदिर ( पुष्कर )
रंगनाथ का मंदिर पुष्कर राजस्थान में स्थित है। इस मंदिर में भगवान विष्णु, लक्ष्मी तथा नृसिंह जी की 1300 साल से भी पुरानी मूर्तिया है। इसमें स्थित काले पत्थरों से निर्मित रंगनाथ की मूर्ति स्थित है। यह मंदिर वास्तुकला का अद्भत्द नमूना है।
ब्रह्माजी का मंदिर ( पुष्कर )
ब्रह्माजी का मंदिर राजस्थान के पुष्कर में स्थित है। यह पुष्कर झील के किनारे पर स्थित है। इस मंदिर में ब्रह्माजी की आदमकद मूर्ति स्थित है।
इस मंदिर में नवग्रहों , सप्तऋषि, नारद के मंदिर स्थित है।
वराह मंदिर ( पुष्कर )
वराह मंदिर पुष्कर में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के वराह अवतार से संबधित है।
इस मंदिर का निर्माण 12 वीं शताब्दी में चौहान राजा अर्नोराज ने 1133-50 ईस्वी में करवाया था।
नारायणी माता का मंदिर ( अलवर )
नारायणी माता का मंदिर अलवर जिले की राजगढ़ तहसील में बरवा डूंगरी पर स्थित है। नारायणी माता को नाइयों की कुल देवी के रूप में पूजा जाता है। मीणा जाति के लोग भी इन्हे अपनी इष्ट देवी मानते है।
त्रिपुरा सुंदरी का मंदिर ( बांसवाड़ा )
त्रिपुरा सुंदरी का मंदिर बांसवाड़ा के तलवाड़ा में त्रिपुरा पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर में सिंह पर सवार भगवती की अष्टादश भुजा की मूर्ति है। इसे लोग त्रिपुर सुंदरी, तुरताई माता, त्रिपुरा महालक्ष्मी आदि नामों से संबोधित करते है
इस मंदिर में भगवती की मूर्ति के पैरों के नीचे प्राचीन समय का कोई यंत्र उत्कीर्ण है। इसे श्रद्धालु त्रिपुरा सुंदरी, तरतुई माता और त्रिपुरा महालक्ष्मी के नाम से संबोधित करते है।
इस मंदिर की स्थापना कब हुई यह तो पता नही मंदिर में सम्राट कनिष्क के समय का शिवलिंग स्थापित है।
कलिंजरा के जैन मंदिर (बांसवाड़ा)
बांसवाड़ा जिले कलींजरा गांव में जैन मंदिर प्रसिद्ध है। यह मंदिर दिगंबर जैनियों का है और ऋषभदेव के नाम से विख्यात है।
मंदिर में पार्श्वनाथ जी की खड़ी मूर्ति है, जिसके आसन पर विक्रमी संवत 1578 अंकित है।
छींच का ब्रह्मा मंदिर ( बांसवाड़ा )
बांसवाड़ा के छिंच ग्राम में बना यह बारहवी शताब्दी का ब्रह्माजी का प्राचीन मंदिर है।
इस मंदिर की स्थापना सिसोदिया वंश के महारावल जगमाल ने की थी। मंदिर में ब्रह्माजी की छ फीट विशाल चतुर्मुखी मूर्ति स्थित है।
मंदिर के बाहर 6 संगमरमर पत्थरों पर नवग्रहों की मूर्तियां स्थित है। मंदिर के पास एक तालाब है जिस पर एक घाट स्थित है जिसे ब्रह्मा जी का घाट कहते है।
बनेश्वर धाम (डूंगरपुर)
बाणेश्वर धाम डूंगरपुर जिले के नवाटपूरा गांव में स्थित है। इस धाम को वागड़ का पुष्कर और वागड़ का कुम्भ कहा जाता है।
बनेश्वर धाम सोम माही और जाखम नदियों के संगम पर स्थित है। इस मंदिर में वागड़ क्षेत्र का सर्वाधिक पूज्य माने जाना वाला शिवलिंग स्थापित है।
इस मंदिर में माघ शुक्ल एकादशी माघ शुक्ल पूर्णिमा तक मेला लगता है।
वेंकटेश्वर मंदिर ( सुजानगढ़ , चुरू )
वेंकटेश्वर ( तिरुपति बालाजी ) भगवान का मंदिर चुरू जिले के सुजानगढ़ तहसील में स्थित है । इस मंदिर का निर्माण वेंकटेश्वर फाउंडेशन के ट्रस्ट सोहनलाल जिनोदिया ने दक्षिण भारत के तिरुपति ( आंध्रप्रदेश ) मंदिर की स्वीकृति से करवाया।
इस मंदिर का निर्माण दक्षिण भारत के प्रसिद्ध स्थापत्य कला के विशेषज्ञ डॉ एम नागराज और डॉ वंकेताचार्य के निर्देशन में हुआ।
श्री महावीर जी (करौली)
श्री महावीर जी का मंदिर करौली जिले के चांदन पुर में स्थित है। यह मंदिर गंभीरी नदी के तट पर स्थित एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है।
ऐसा माना जाता है की 400 वर्ष पूर्व गंभीरी नदी के किनारे बसे एक छोटे से गांव चांदन के एक ग्वाले की गाय जब शाम के समय घर आती तो उसके थन में दूध नही मिलता था, ऐसा रोज रोज होने पर एक दिन ग्वाला उसके पीछे पीछे गया। उसने देखा की गाय एक मिट्टी के टीले पर खड़ी होती है और उसके थनों से दूध निकलने लगता है। तब यह बात उस ग्वाले ने गांव वालों को बताई ओर उस जगह की खुदाई की। खुदाई में जैन धर्म के चोबिसवे तीर्थंकर भगवान महावीर की प्रतिमा मिली। यहीं पर एक जैन श्रावक अमरचंद बिलाला ने उस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया जो चांदन पूर के महावीर जी के नाम से बाद में श्री महावीर के नाम से प्रसिद्ध हुए।
ऋषभदेव (धूलेव, उदयपुर )
उदयपुर में धुलेव कस्बे में आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का विशाल मंदिर स्थित है।
इस मंदिर में दिगंबर, श्वेतांबर, वैष्णव, शैव, भील सभी समुदाय के लोग आते है। इस मंदिर में भगवान की पूजा केसर से की जाती है इसलिए यह तीर्थ केसरियाजी या केसरियानाथ जी के नाम से जाना जाता है।
धुलेव कस्बा अब ऋषभदेव के नाम से जाना जाता है। मंदिर में तीन फीट ऊंची काले पत्थर से निर्मित ऋषभदेव की मूर्ति स्थित है।
स्थानीय आदिवासी लोग उन्हें कलाजी के नाम से जानते है। वे कालाजी की आण को सर्वोपरि मानते है। दूसरी ओर वैष्णव धर्म के लोग इन्हें विष्णु भगवान का अवतार मानते है।
यहां पर चैत्र कृष्ण अष्टमी को विशाल मेले का आयोजन होता है तथा हर साल आश्विन कृष्ण प्रथम तथा द्वितीय को भगवान की भव्य रथ यात्रा निकलती है।
नाकोड़ा (बाड़मेर)
जैन धर्म के तबीसवे तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ का तीर्थस्थल नाकोड़ा बाड़मेर जिले में स्थित है।
भक्तजन इन्हे हाथ का हजूर या जागती जोत भी कहते है।
यहां पर प्रतिवर्ष पार्श्वनाथ के जन्म उत्सव पर पौष बदी दशमी को विशाल मेला लगता है।
तलवाड़ा का प्राचीन सूर्य मंदिर (बांसवाडा)
बांसवाड़ा से लगभग 15 किमी की दूरी पर तलवाड़ा में प्राचीन सूर्य मंदिर में स्थित है। यह मंदिर 11 वी शताब्दी में निर्मित है। इसमें सूर्य की मूर्ति एक कोने में जीर्ण शीर्ण अवस्था में स्थित है।ओर बाहर एक चबूतरे पर सूर्य के रथ का एक चक्र टूटी हुई अवस्था में है। यहां पर श्वेत पत्थरों से निर्मित नव ग्रहों की मूर्तिया स्थित है। इस मंदिर के पास में ही बारहवी शताब्दी का बना हुआ लक्ष्मी नारायण मंदिर स्थित है।
रणकपुर के जैन मंदिर (पाली)
रणकपुर के जैन मंदिर पाली जिले में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण महाराणा कुम्भा के काल में जैन व्यापारी धरनक शाह ने करवाया। इस मंदिर के वास्तुकार शिल्पी जैता थे। यह एक चतुर्मुखी मंदिर है इसके गृहग्रह में एक मुख्य प्रतिमा और चारों दिशाओं में एक एक प्रतिमा स्थित है।
इस मंदिर में 1444 खंबे स्थित है और यह सभी खंबे दूसरे खंबे से भिन्न है तथा कहीं से भी देखने पर मंदिर के गर्भ गृह की मूर्ति साफ दिखाई देती है यानी इसके 1444 खंबे बीच में नही आते इसलिए इस मंदिर को खंभों का अजायबघर घर कहते है।
यह मंदिर जैन धर्म के दिव्य विमान नलिनी गुल्म के आकार का बना हुआ था।
नीबों का नाथ (पाली)
फलाना के पास निबों के नाथ महादेव का विशाल मंदिर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवों की माता कुंती इसी स्थान पर शिव पूजा करती थी। पांडवों ने यहां नवदुर्गा की स्थापना की ओर बावड़ी का निर्माण करवाया। यहां वर्ष में दो बार मेले लगते है।
भीनमाल का वराह मंदिर (जालौर)
भीनमाल में स्थित वराह मंदिर भारत के प्राचीन वराह मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में स्थित वराह मूर्ति जैसलमेर के पीले पत्थरों से निर्मित है। यह प्रतिमा 7 फुट ऊंची और अढ़ाई फुट चौड़ी है।
दिलावाड़ा जैन मंदिर (आबू)
दिलावाडा जैन मंदिर आबू सिरोही जिले में स्थित है। यह मुख्यत 5 मंदिरों का समूह है । यहां पर पांच शेवतांबर मंदिर के साथ एक दिगम्बर मंदिर भी है।
यहां के प्रमुख मंदिर में विमलशाही ओर लुनवशाही मंदिर है।
विमलशाही मंदिर का निर्माण गुजरात के चालुक्य राजा भीमदेव के मंत्री और सेनापति विमल शाह ने करवाया था। इसके शिल्पकार कीर्तिकर थे। इस मंदिर के निर्माण में लगभग 14 वर्ष का समय लगा था और 3000 शिल्पी ने काम किया था। इस मंदिर में 57 देवरिया स्थापित है।जिसमे जैन तीर्थकारों ओर देवी देवताओं की मूर्ति है।
दूसरा प्रमुख मंदिर लूणवशाही मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण राजा भीमदेव के अपात्य वास्तुपाल ओर तेजपाल ने संवत 1287 ईस्वी में करवाया था। इस मंदिर में जैन तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ की श्यामवर्णी प्रतिमा को प्रतिष्ठा चैत्र कृष्ण तृतीया संवत 1287 को आचार्य श्री विजय सेन सूरी ने की थी।
लूणवशाही मंदिर के बाहर एक तरफ तीर्थकर भगवान किंथुनाथ दिगंबर जैन मंदिर स्थित है। इसका निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था।
तिजारा (अलवर)
तिजारा अलवर जिले में जैन धर्म तीर्थकर चंद्रप्रभु का मंदिर है। इसका निर्माण जैन समाज के लोगों द्वारा करवाया गया है।
करणी माता मंदिर ( देशणोक, बीकानेर )
करणी माता मंदिर बीकानेर जिले के देशणोक में स्थित है। इसका निर्माण बीकानेर के महाराजा करणीसिंह द्वारा करवाया गया। करणी माता बीकानेर के शासकों की आराध्य देवी मानी जाती है। यह मंदिर चूहों के लिए विश्व प्रसिद्ध है इसलिए इसे चूहों वाला मंदिर कहते है। यहां पर सफेद चूहे का दर्शन करना शुभ माना जाता है।
सुंधा माता मंदिर (जालौर)
सुंधा माता का प्राचीन मंदिर जालौर जिले में स्थित है । यह मंदिर अरावली श्रृंखला में 1220 मीटर की ऊंचाई पर एक पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर में राजस्थान और गुजरात से हजारों भक्त आते है। राजस्थान का पहला रोप वे इसी पहाड़ी पर लगा था।
संत मावजी का मंदिर (डूंगरपुर)
संत मावजी का मंदिर साबला ग्राम डूंगरपुर में स्थित है। संत मावजी को यहां विष्णु के कल्कि अवतार मानते है।
महेंदीपुर बालाजी
आगरा - जयपुर मार्ग में दौसा के निकट मेंहदीपुर बालाजी का भव्य मंदिर स्थित है। इस मंदिर यह विशेषता है की इसमें स्थित मूर्ति पर्वत का ही एक अंग है।
सालासर बालाजी मंदिर ( सालासर, चुरू )
सालासर बालाजी मंदिर राजस्थान के चुरू जिले में स्थित है। यहां पर वर्ष भर श्रदालु आते रहते है। भारत में यह एकमात्र बालाजी का मंदिर है जिसमे बालाजी के दाढ़ी और मूंछ है।
यहां स्थित मूर्ति नागौर जिले के आसोटा गांव के किसान को खेत में हल जोतते समय मिली। उसी रात बालाजी ने सालासर के एक भक्त मोहन दास को सपने में दर्शन दिए और मूर्ति के बारे में बताया। उन्होंने उस मूर्ति को आसोटा से सालासर लाकर स्थापना की। यहां पर पिछले 20 साल से अखंड हरिकीर्तन और राम के नाम का जाप हो रहा है।
यहां पर आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्दशी और पूर्णिमा को मेलों का आयोजन होता है। इस मंदिर का रखरखाव मोहनदास ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
जीण माता मंदिर (सीकर)
जीण माता का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में रैवासा में स्थित है। यहां जीण माता का एक प्राचीन मंदिर स्थित है। यह मंदिर आठवी शताब्दी में निर्मित है। यहां पर वर्ष में दो बार मेले का आयोजन होता है।
इस मंदिर के पास ही हर्ष पहाड़ी पर जीण माता के भाई हर्ष का मंदिर है। जिसे हर्ष भैरव कहते है।
इस मंदिर में जीण माता को मदिरा का भोग लगता है।
एक बार मुगल सम्राट औरंगजेब इस मंदिर को तहस नहस करने आया था तो उसके सैनिकों पर मधुमखियों ने हमला कर दिया था और ओरंगजेब को जान बचाकर भागना पड़ा।
बाबा रामदेव जी का मंदिर - (रामदेवरा, पोकरण )
बाबा रामदेव जी का मंदिर जैसलमेर जिले में पोकरण में स्थित है। यह राजस्थान के लोकदेवता है। यह पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा मंदिर है। यहां पर बाबा रामदेव जी की जीवित समाधि स्थित है। यह मंदिर हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है । बाबा रामदेव जी की समाधि के पास में ही डाली बाई की समाधि और कंगन स्थित है।
मंदिर के पास में परचा बावड़ी स्थित है। यह बावड़ी रामदेव जी द्वारा बनवाई गई है। यहां पर जल के अभाव के कारण रामदेव के द्वारा निर्माण किया गया रामसरोवर तालाब स्थित है। रामदेव जी ने छुआ छूत, जात पात का भेदभाव को दूर करने तथा नारी व दलित उत्थान को दूर किया था। उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों और पिछड़े वर्गों की सेवा में समर्पित के दिया।
इडाना माता (ईडाना , उदयपुर)
ईडाना माता का मंदिर राजस्थान के ईडाना, उदयपुर जिले में स्थित है। यह मंदिर उदयपुर शहर से 60 किलोमीटर दूर अरावली की पहाड़ियों में स्थित है। इस मंदिर की छत नही है। यह मंदिर खुले चौक में है। ईडना माता को अग्नि वाली माता के नाम से भी जानते है। यहां ईडाना माता अग्नि से स्नान करती है। यहां पर महीने में कम से कम दो या तीन बार अग्नि प्रज्वलित होकर मूर्ति को छोड़कर सारा श्रंगार और चुनरी स्वाहा हो जाती है। इस अग्नि स्नान को देखने भक्तों का मेला लग जाता है। यहां पर लकवे से पीड़ित मरीज ठीक हो जाते है। मंदिर के पुजारी के अनुसार ईडाना माता पर ज्यादा भार होने पर माता अग्नि का रूप धारण करती है। अग्नि का रूप इतना विकराल होता है की अग्नि की लपटें 10-20 फुट ऊपर तक जाती है
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