राजस्थान के प्रमुख आन्दोलन
1. राजस्थान के प्रमुख किसान आंदोलन
2. राजस्थान के प्रमुख जनजाति आंदोलन
3. राजस्थान के प्रजामंडल आंदोलन
राजस्थान के प्रमुख किसान आंदोलन
किसानों द्वारा किए गए आंदोलन को किसान आंदोलन कहा जाता है। राजस्थान में किसान आंदोलन के जनक विजयसिंह को कहा जाता है।
राजस्थान में समय समय पर अनेक किसान आंदोलन हुए है। चाहे वो जागीरदारों के खिलाफ हो या अंग्रेजों के।
राजस्थान में आंदोलन का प्रमुख कारण लगान, लाग - बाग, बैठ - बेगार व्यवस्था और लाटा कुंता पद्धति प्रमुख थे।
राजस्थान में सामंतों और जागीरदारों द्वारा किसानों पर 84 प्रकार के कर लगाए गए थे।
बिजोलिया किसान आंदोलन (1897-1941)
भारत का सबसे व्यापक, सबसे शक्तिशाली तथा सर्वाधिक लंबे समय तक चलने वाला किसान आंदोलन। यह आंदोलन बिजोलिया में हुआ था।
बिजोलिया किसान आंदोलन का जनक साधु सीताराम दास को कहा जाता है। यह सबसे लंबा चलने वाला आंदोलन था। यह 1897 से 1941 तक लगभग 44 वर्षों तक चला था। बिजोलिया किसान आंदोलन को भारत का अहिंसात्मक आंदोलन माना जाता है
बिजोलिया मेवाड़ रियासत का एक ठिकाना था। इस ठिकाने का संस्थापक अशोक परमार था। अशोक परमार ने खानवा के युद्ध में राणा सांगा का साथ दिया था। महाराणा सांगा ने युद्ध में वीरता दिखाने पर अशोक परमार को यह ठिकाना भेंट किया था।
बिजौलिया ठिकाने में सर्वाधिक धाकड़ जाति के किसान निवास करते थे।
बिजौलिया किसान आंदोलन का प्रमुख कारण
L - लगान / कर
L - लाटा - कुंटा
B - बेगार / बेगारी
लगान - किसानों से वसूल किए जाने वाले विभिन्न कर
लाटा - तैयार की गई फसल का बंटवारा करना
कुंता - खड़ी फसल का बंटवारा करना
बेगार प्रथा - बिना मजदूरी करवाया जाने वाला कार्य
बिजौलिया किसान आंदोलन के प्रमुख चरण
बिजौलिया किसान आंदोलन प्रमुख रूप से तीन चरण में हुआ।
प्रथम चरण (1897-1916)
बिजोलिया में राव कृष्णसिंह के काल में यहां के किसानों से 84 प्रकार के कर लिए जाते थे।
1897 में राव कृष्ण सिंह ने किसानों पर नई भूराजस्व प्रणाली में परिवर्तन कर नए प्रकार के कर लागू कर दिए थे। इन्ही करों से परेशान होकर भीलवाड़ा के गिरधारीपुरा गांव के गंगाराम धाकड़ ने आत्महत्या कर ली थी।
बिजौलिया के धाकड़ जाति के किसानों ने गिरधारीपुरा गांव में गंगाराम धाकड़ के मृत्यु भोज के अवसर पर एक सभा की।
नए करों के विरोध में बिजौलिया के किसानों ने साधु सीताराम दास के कहने पर एक प्रतिनिधि मंडल को महाराणा फतहसिंह के पास भेजा। इस प्रतिनिधि मंडल में नानक जी पटेल और ठाकरी पटेल थे।
जागीरदार के विरुद्ध महाराणा के पास शिकायत करने पर राव कृष्णसिंह ने इन दोनों को बिजौलिया ठिकाने से निकाला दे दिया था तथा हर्जाना देने पर निष्कासन रद्द कर दिया था।
इस प्रकार बिजौलिया में किसानों का प्रथम प्रयास असफल रहा।
1903 में राव कृष्णसिंह ने किसानों पर एक नया कर चंवरी कर और लगा दिया था। जिसमे किसानों से 5 रुपए लिए जाने लगे।
चंवरी कर - पुत्री के विवाह पर लिया जाने वाला कर
किसानों द्वारा इस कर का विरोध किया गया और जागीरदार के समक्ष 200 विवाह योग्य कन्याओं को प्रस्तुत करके कर नही लेने की विनिती की लेकिन कृष्णसिंह परमार नही माने तब बिजौलिया की जनता बिजौलिया छोड़कर जाने लगी तब 1906 में इस कर को नाममात्र का कर दिया गया।
1906 में बिजौलिया के नए जागीरदार पृथ्वी सिंह बने
तलवार बंधाई कर - मेवाड़ महाराणा द्वारा नए जागीरदार से लिया जाने वाला कर।
नए जागीरदार ने इस नए कर को बिजौलिया की जनता पर डाल दिया था। साधु सीताराम दास , फतेहकरण ओर ब्रह्मदेव द्वारा इस कर का विरोध किया गया। इसलिए इन तीनों को बिजौलिया से बाहर कर दिया था।
द्वितीय चरण (1916-1927)
1916 में बिजौलिया किसान आंदोलन में विजयसिंह पथिक जुड़ गए।
विजय सिंह पथिक का मूल नाम भूपसिंह गुर्जर था, यह उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले थे । इन्होंने रासबिहारी बोस के साथ सशस्त्र विद्रोह में भाग लिया था और इस कारण इनकों टोड गढ़ दुर्ग में बंदी बना दिया गया।
भूपसिंह गुर्जर टॉड गढ़ दुर्ग से भाग निकले और मेवाड़ के ओछड़ी गांव में में आ गए थे। यहां पर रहते हुए शिक्षक का कार्य करने लगे और अपनी पहचान छिपाकर अपना नाम विजय सिंह पथिक रख लिया।
यहां रहते हुए विजय सिंह पथिक ने हरि भाई किंकर द्वारा स्थापित विद्या प्रचारिणी सभा से जुड़ गए।
विजय सिंह पथिक एक बार चितौड़गढ़ दुर्ग में विद्या प्रचारिणी सभा के सम्मेलन में भाग लेने के लिए 1916 में आए, तब साधु सीताराम दास के आग्रह करने पर विजय सिंह पथिक सन् 1916 में बिजौलिया किसान आंदोलन से जुड़ गए।
बिजौलिया उपरमाल ठिकाना
विजय सिंह पथिक ने 1917 में ऊपरमाल पंच बोर्ड की स्थापना की । इसके अध्यक्ष मन्ना राम पटेल को नियुक्त किया गया। इसका उद्देश्य बिजौलिया के किसानों को कर नही देने के लिए प्रेरित करना था।
समाचार पत्र - ऊपर माल का डंका
हस्तलिखित मेवाड़ी भाषा का समाचार पत्र जो विजय सिंह पथिक द्वारा निकाला गया था।
विजय सिंह पथिक ने किसानों को बेगार व लगान नहीं देने के लिए प्रेरित किया -
हरियाली अमावस सुखद, शुभ मुहूर्त जान लो।
स्वतंत्रता की खातिर, अब धर्म युद्ध की ठान लो ।।
विजय सिंह से प्रभावित होकर माणिक्य लाल वर्मा ने बाबू की नौकरी छोड़ दी और इस आंदोलन से जुड़ गए तथा पंछीड़ा नामक गीत भी लिखा।
प्रताप समाचार पत्र - गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा कानपुर से प्रकाशित ।
इसी समाचार पत्र ने बिजौलिया किसान आंदोलन को राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया।
राजस्थान सेवा संघ - इसकी स्थापना 1919 में वर्धा महाराष्ट्र में विजय सिंह पथिक, सेठ जमनालाल बजाज, केसरी सिंह बारहठ और अर्जुन लाल सेठी ने की।
1920 में वर्धा (महाराष्ट्र) से राजस्थान केसरी नामक समाचार पत्र निकाला गया ।
नवीन राजस्थान - रामनारायण चौधरी - अजमेर
तरुण राजस्थान - जयनारायण व्यास
बिंदूलाल भट्टाचार्य आयोग - 1919
बिजौलिया के किसानों की मांगों की जांच करने के लिए एक आयोग बनाया गया जिसके अध्यक्ष बिंदुलाल भट्टाचार्य थे अन्य सदस्य अफजल अली हाकिम, अमरसिंह राणावत मांडलगढ़ को बनाया गया।
इस आयोग ने किसानों की मांग को सही ठहराया लेकिन कार्यवाही नही हुई।
1922 में में राजस्थान के A.G.G. रोबर्ट होलैड ने बिजौलिया की मदद की लेकिन किसानों से समझौता नहीं कर पाए।
तृतीय चरण (1927-1941)
प्रमुख नेता - सेठ जमनालाल बजाज, हरि भाऊ उपाध्याय, रामनारायण चौधरी, माणिक्य लाल वर्मा
तृतीय चरण का आंदोलन का नेतृत्व माणिक्य लाल वर्मा ने किया।
विजय सिंह पथिक को 1923-1927 तक जेल में डाल दिया गया।
1927 में इस आंदोलन की बागडोर सेठ जमनालाल बजाज के हाथों में आ गई।
सत्याग्रह आंदोलन - सेठ जमनालाल बजाज ने किसानों की जमीनें वापस प्राप्त करने के लिए 1931 में सत्याग्रह आंदोलन किया । इस आंदोलन में श्री मति अंजना देवी चौधरी भाग लिया था।
महात्मा गांधी ने मेवाड़ के प्रधानमंत्री सुखदेव प्रसाद लिखकर किसानों मांग मानने के लिए कहा।
सुखदेव प्रसाद ने सेठ जमनालाल बजाज से समझौता तो किया लेकिन पूर्णत पालना नहीं की गई। नारायण पटेल ने सुखदेव प्रसाद का विरोध किया तो नारायण पटेल को जेल में डाल दिया गया सुखदेव प्रसाद ने माणिक्य लाल वर्मा को कुंभलगढ़ दुर्ग में बंदी बना लिया गया।
1947 में मेवाड़ के पीएम सर टी राघवाचार्य ने अपनी मंत्री मोहनलाल मेहता को बिजौलिया भेजकर किसानों की सभी मांगे मांग ली गई।
यह आंदोलन माणिक्य लाल वर्मा ने नेतृत्व में समाप्त हुआ और यह माणिक्य लाल वर्मा के जीवन की सबसे बड़ी विजय थी।
बेंगु किसान आंदोलन (1921-1923)
बेंगू मेवाड़ राज्य का एक ठिकाना था और वर्तमान में चितौड़गढ़ जिले में है।
बेगूं किसान आंदोलन का प्रमुख कारण लाग, बाग, बेगारी और लाटा कुंता थी।
बेंगू में धाकड़ जाति के लोग रहते थे।
बेंगू के किसानों ने L.L.B. से परेशान होकर मैनाल नामक जगह पर एकत्रित हुए। इस सभा में विजय सिंह और रामनारायण चौधरी भी आए।
विजय सिंह पथिक ने इस आंदोलन का नेतृत्व रामनारायण चौधरी को दे दिया।
बोल्शेविक समझौता
बेगूं के जागीरदार अनुपसिंह ओर रामनारायण चौधरी के मध्य एक समझौता किया गया जिसमे किसानों की मांग मान ली गई। बाद में जागीरदार अनुपसिंह को उदयपुर में बंदी बना लिया गया। इस समझौते को बोल्शेविक समझौता कहते है।
ट्रेंच आयोग
बेंगू के किसानों की मांगों की जांच करने के लिए ट्रेंच के नेतृत्व में ट्रेंच आयोग की स्थापना की गई । जिसमे किसानों की कुछ मांगों को छोड़कर सभी मांगे सही ठहराई गई।
गोविंदपुरा हत्याकांड - 13 जुलाई 1923
बेंगू के किसानों ने गोविंदपुरा गांव में एक सभा की। ट्रेंच के आदेश पर यहा के किसानों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई गई। इस गोलीकांड में कृपाजी ओर रूपाजी धाकड़ शाहिद हो गए।
1923 में इस हत्याकांड के बाद विजय सिंह पथिक बेगूं आए तथा गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया।
बूंदी किसान आंदोलन (1922-1925)
बूंदी किसान आंदोलन बूंदी जिले के बरड़ क्षेत्र में हुआ। इसलिए इसे बरड़ आंदोलन भी कहते है।
बूंदी किसान आंदोलन का नेतृत्व नयनुराम शर्मा ने किया।
डाबी हत्याकांड - (2 अप्रैल 1923)
बूंदी जिले के डाबी गांव में किसानों ने एक सभा की । बूंदी के पुलिस अधीक्षक इकराम हुसैन ने सभा कर रहे किसानों पर गोलियां चलाई जिसमे दो किसान नानक जी भील और देवालाल गुर्जर शहीद हो गए। नानक जी भील झंडा गीत गाते हुए शहीद हुए।
माणिक्य लाल वर्मा ने नानक जी भील की स्मृती में अर्जी गीत लिखा।
अलवर किसान आंदोलन 1921-25
अलवर किसान आंदोलन तत्कालीन अलवर शासक महाराजा जयसिंह के समय हुआ था।
इस आंदोलन का प्रमुख कारण
जंगली सुअर फसलों को नुकसान पहुंचाते थे और उनको मारने की इजाजत नही थी।
लगान करों में बढ़ोतरी
बाद में महाराजा जयसिंह ने जंगली सुअरों को पालने पर प्रतिबंध लगाकर मारने की इजाजत दे दी और इसी के कारण यह आंदोलन समाप्त हो गया।
1921-22 में महाराजा जयसिंह ने लगान करों में बढ़ोतरी कर दी जिसके कारण यह आंदोलन पुन प्रारंभ हो गया।
नीमूचना हत्याकांड 14 मई 1925
अलवर के किसान नीमूचना गांव में लगान करों की बढ़ोतरी के विरुद्ध सभा कर रहे थे। जागीरदार के सेनापति छज्जूसिंह ने किसानों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई जिसमे कई किसान शहीद हो गए इसे ही निमूचना हत्याकांड कहा गया।
रामनारायण चौधरी ने इसे नीमूचना हत्याकांड की संज्ञा दी।
महात्मा गांधी ने इसे दोहरी डायर की संज्ञा दी तथा इसे जलियांवाला बाग हत्याकांड से भी विभित्स बताया।
नीमूचना हत्याकांड को भारत का दूसरा जलियांवाला बाग हत्याकांड कहा जाता है।
दिल्ली से प्रकाशित होने वाले रियासत नामक समाचार पत्र ने इस हत्याकांड की तुलना जलियांवाला बाग हत्याकांड से की।
शेखावाटी किसान आंदोलन (1922-1947)
शेखावाटी किसान आंदोलन का नेतृत्व रामनारायण चौधरी ने किया ।
शेखावाटी क्षेत्र में सबसे पहले सीकर ठिकाने में किसान आंदोलन का सूत्रपात हुआ।
यह राजस्थान का एकमात्र किसान आंदोलन था जो स्वतंत्रता के बाद भी चला।
शेखावाटी क्षेत्र - शेखावाटी क्षेत्र में सीकर, झुंझुनूं ओर चुरू जिला आते है। रियासत काल में इस क्षेत्र में पांच बड़े ठिकाने थे जिन्हे पंचपने कहा जाता था।
1. नवलगढ़
2. मलसीसर
3. मंडावा
4. डुंडलोड
5. बिसाऊ
शेखावाटी क्षेत्र में सबसे पहले सीकर ठिकाने में किसान आंदोलन का सूत्रपात हुआ।
सीकर के संस्थापक श्री कल्याणसिंह थे। इन्होंने 1921 में लगान करों में बढ़ोतरी कर दी तथा इन्होंने 25% से 30% तक भू राजस्व वसूलना प्रारंभ कर दिया। रामनारायण चौधरी ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया।
चिड़ावा सेवा समिति
चिड़ावा सेवा समिति की स्थापना रामनारायण चौधरी ने 1923 में की । इस समिति का उद्देश्य श्री कल्याण सिंह द्वारा बढ़ाए गए करों का विरोध करना था।
अखिल भारतीय महासभा का अधिवेशन 1925 में पुष्कर में आयोजित हुआ। इसके सभापति कृष्णसिंह ( भरतपुर के महाराजा ) थे। इस अधिवेशन में शेखावाटी क्षेत्र के किसान भी एकत्रित हुए और शेखावाटी आंदोलन का मुद्दा इस अधिवेशन में उठाया।
कटराथल का महिला सम्मेलन - 25 अप्रैल 1934
यह महिला सम्मेलन कटराथल गांव (सीकर) में हुआ। यह राजस्थान में महिलाओं का एकमात्र सम्मेलन था।
यह सम्मेलन सीकर के सीहोर ठिकाने के जागीरदार मानसिंह के द्वारा सोतिया का बास में महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार व अमानवीय अत्याचार करने के कारण किया गया।
इस सम्मेलन में 10 हजार महिलाओं ने भाग लिया। इनका नेतृत्व किशोरी देवी ने किया।
इस सम्मेलन में भरतपुर के ठाकुर देशराज की पत्नी उन्तमा देवी ने ओजस्वी भाषण दिया था।
कटराथल महिला सम्मेलन के बाद सीकर के जागीरदार ने धारा 144 लागू कर दी।
सिकरवाटी जाट पंचायत के सदस्य देवीलाल चौधरी ने जयपुर राज्य की सरकार को शिकायत भेजी। W.T. वैब शेखावाटी के किसानों से वार्ता करने तथा सिकरवाटी जाट पंचायत से समझौता करने सीकर आए लेकिन सारे प्रयास असफल रहे।
जयसिंहपुरा हत्याकांड - 21 जून 1934
डूंडलोद (झुंझुनूं) के जागीरदार हरनाथ सिंह के भाई ईश्वरी सिंह ने जयसिंहपुरा गांव में हल जोत रहे किसानों पर अंधाधुंध फायरिंग की इसमें चार किसान मारे गए तथा 23 किसान घायल हुए थे।
किसानों ने जयपुर राज्य में ईश्वरी सिंह और उसके साथियों पर मुकदमा दर्ज करवाया। इनको 10-10 साल की कठोर कारावास की सजा हुई। यह जयपुर राज्य का पहला मामला था जिसमे किसानों के हत्यारों को सजा हुई।
जयसिंहपुरा शहीद दिवस - 21 जुलाई 1934
शेखावाटी के किसानों ने जयसिंहपुरा हत्याकांड के विरोध में सम्पूर्ण राज्य में जयसिंहपुरा शहीद दिवस मनाया गया।
खुड़ी - कुंदन गांव हत्याकांड - अप्रैल 1913
सीकर जिले के इस गांव के किसानों पर w.t. वेब के आदेश पर गोलियां चलाई गई जिसे खुड़ी कुंदन हत्याकांड कहा जाता है।
इस हत्याकांड की आलोचना भारत से बाहर इंग्लैंड में भी हुई।
मेव किसान आंदोलन (1932-35)
क्षेत्र - अलवर, भरतपुर
मेव जाति के मुसलमानों की अधिक आबादी के कारण वह क्षेत्र मेवात क्षेत्र कहलाता है।
मेवात क्षेत्र में मेव जाति के किसान भी लगान, लाटा कुंता ओर बेगारी भी परेशान थे।
1925 में यहां के जागीरदारों ने लगान करों में बढ़ोतरी की जिसके फलस्वरूप 1932 में यहां के मेव किसानों ने आंदोलन किया।
मेव किसान आंदोलन का नेतृत्व मोहम्मद हाजी अली, यासीन खान, गुलाम भीक नारंग ने किया।
1932 में मोहम्मद हाजी अली द्वारा 'अंजुमन - खादिम - उल - इस्लाम नामक संस्था का गठन करके यह आंदोलन किया।
इस आंदोलन में कालांतर में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए जिसके कारण यह आंदोलन समाप्त हो गया।
दुधवा खारा किसान आंदोलन
दुधवा खारा गांव स्वतंत्रता से पूर्व बीकानेर राज्य के अंतर्गत आता था वर्तमान में यह चुरू जिले में है।
इस आंदोलन का नेतृत्व बीकानेर राज्य प्रजा परिषद के सदस्य हनुमान राम चौधरी और मधाराम वैद्य द्वारा किया गया।
बीकानेर रियासत में सर्वप्रथम किसान आंदोलन का सूत्रपात दुधवा खारा में ही हुआ। उस समय बीकानेर राज्य के शासक महाराजा शार्दुल सिंह थे।
आंदोलन का कारण - नई भू राजस्व पद्धति , सामंती शोषण व अत्याचार ओर आबियाना कर (पानी पर लगने वाला कर)
उस समय वहां के जागीरदार सूरजमल सिंह थे।
कांगड़ा कांड -1946
कांगड़ा के जागीरदार ने किसानों की सभा के दौरान उनके बच्चों ओर महिलाओं को बंधक बनाकर कांगड़ा दुर्ग ले आया तथा उनके साथ अत्याचार किया इसे कांगड़ा कांड कहते है।
मेवाड़ जाट किसान आंदोलन - जून 1880
राजस्थान में हुआ प्रथम किसान आंदोलन। उस समय मेवाड़ के शासक महाराजा सज्जन सिंह थे।
यह आंदोलन मातृकुंडिया (चितौड़) नामक स्थान से किसानों ने शुरू किया था।
जुलाई 1880 को इस आंदोलन को कुचल दिया गया।
प्रमुख कारण - मेवाड़ में नई भू राजस्व पद्धति को लागू करना,
लगान करों में बढ़ोतरी, लाटा कुंता
राजस्थान के प्रमुख जनजाति आंदोलन
भगत आंदोलन - गुरु गोविंद गिरी
गुरु गोविंद गिरी का जन्म 1858 ई में बासिया (डूंगरपुर) में एक बंजारे के परिवार में हुआ। इनके गुरु राजगीरी (कोटा - बूंदी) अखाड़े के साधु थे।
उपनाम - भीलों के गुरु
यह आंदोलन भील जनजाति के लोगों के लिए चलाया गया था। भील जनजाति गोविंद गिरी को अपना गुरु मानती थी।
यह आंदोलन मुख्यत वागड़ क्षेत्र डूंगरपुर और बांसवाडा में चलाया गया। गोविंद गिरी ने भीलों में धार्मिक, आर्थिक ओर सामाजिक जागृति उत्पन करने के लिए आंदोलन चलाया।
आंदोलन का कारण - सामंती अत्याचार, लगान करों में बढ़ोतरी
भीलों को किसी भी प्रकार का कोई वनों से लाभ नही होता था।
सम्प सभा की स्थापना - महर्षि दयानंद सरस्वती की प्रेरणा से गोविंद गिरी ने 1883 ई में सिरोही में इस सभा की स्थापना की।
सम्पसभा का शाब्दिक अर्थ है आपसी एकता और भाई चारे को बढ़ावा देना। इस सभा में कुल 10 नियम थे। सम्प सभा के 10 नियमों को मानने वाला भगत कहलाता था।
सम्प सभा के प्रमुख अधिवेशन
1. सिरोही 1903
भीलों पर हो रहे विभिन्न अत्याचारों को रोकना
2. मानगढ़ पहाड़ी ( बांसवाड़ा) 1908
जागीरदार को किसी भी प्रकार का कोई भी कर नही देना और ना ही वनों का कोई उत्पाद देना
मानगढ़ पहाड़ी हत्याकांड - 17 Nov. 1913
गुरू गोविंद गिरी सामंती अत्याचारों से परेशान होकर डूंगरपुर और बांसवाडा के भील समर्थकों के साथ मानगढ़ पहाड़ी पर चले गया थे।
डूंगरपुर, बांसवाड़ा राज्य की सेना, मेवाड़ भील कोर, नवी बटालियन राजपूत आदि ने इस पहाड़ी को घेरकर भीलों पर गोलियां चलाई।
इस हत्याकांड में 1500 भील मारे गए। मानगढ़ पहाड़ी पर गोलियां चलाने का आदेश कर्नल शटन के द्वारा दिया गया था।
इस गोलीबारी में सबसे पहले गोली डुंगरजी ओर पूंजा जी के पैर में लगी थी बाद में गोविंद गिरी को गिरफ्तार कर लिया गया।
गोविंद गिरी को इडर जेल (गुजरात) भेज दिया गया। गुरु गोविंद गिरी का अंतिम समय गुजरात के कंबोज नामक स्थान पर बीता।
मानगढ़ पहाड़ी प्रतिवर्ष मार्ग शीर्ष पूर्णिमा को मेला लगता है। इस मेले में सर्वाधिक भील जनजाति के लोग आते है। इसे आदिवासियों का मेला भी कहते है। यही पर गोविंद गिरी का स्मारक बना हुआ है।
लसाड़िया आंदोलन
यह आंदोलन वागड़ क्षेत्र में चलाया गया। इस आंदोलन के प्रतिपादक वागड़ के धनी संत मावजी के द्वारा भीलों में धार्मिक सुधार के लिए चलाया गया।
संत मावजी ने निष्कलंक संप्रदाय की स्थापना की।
चोपड़ा ग्रंथ - संत मावजी के उपदेश इसी ग्रंथ में है।
एकी आंदोलन -1921
भील जनजाति में एकता स्थापित करने के लिए यह आंदोलन चलाया गया।
एकी आंदोलन का नेतृत्व मोतीलाल तेजावत ने की थी। मोतीलाल तेजावत का जन्म 1886 ई में कोल्यारी गांव में एक जैन परिवार में हुआ था।
उपनाम - आदिवासियों के मसीहा, भीलों के बावजी
यह आंदोलन उदयपुर व सिरोही क्षेत्र ने चलाय गया
यह आंदोलन गरसिया जनजाति के लिए चलाया गया।
इस आंदोलन की शुरुआत 1921 में मोतीलाल तेजावत ने मातृ कुंडिया मेले से की। मातृ कुंडिया मेला वैशाख पूर्णिमा के दिन भरता है।
मेवाड़ पुकार - मोतीलाल तेजावत ने एकी आंदोलन में 21 मांगों का एक पत्र तैयार किया जिसे मेवाड़ पुकार कहा जाता है।
मेवाड़ या राजस्थान का हरिद्वार मातृ कुंडिया को कहा जाता है। एकी आंदोलन का मुख्य कारण भीलों में पनपा व्याप्त असंतोष था। जिसके निम्न कारण थे --
बराड़ कर - यह एक कर था जो भीलों से लिया जाता था।
डाकन प्रथा - भीलों में व्याप्त कुप्रथा
लाग बाग - विभिन्न प्रकार के कर
नए करों को लागू करना - अफीम, तम्बाकू, नमक पर नए कर लगाना।
अधिकारों का हनन - वनों की उपज वाली कृषि पर रोक
मोतीलाल तेजावत का प्रमुख केन्द्र झाड़ोल ठिकाना था तथा यही से 1921 ई में करबंदी के साथ असहयोग आन्दोलन चलाया ।
मोतीलाल तेजावत ने यह आंदोलन महात्मा गांधी की प्रेरणा से चलाया।
निमड़ा हत्याकांड - 7 मार्च 1922
यह हत्याकांड सिरोही के निमड़ा गांव में हुआ था। इस हत्याकांड को राजस्थान का दूसरा जलियांवाला बाग हत्याकांड कहते है।
मोतीलाल तेजावत ने अपने भील समर्थकों के साथ निमड़ा गांव में सभा की।
मेजर शटन ने नेतृत्व में भीलों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई गई। इस हत्याकांड में 1200 भील मारे गए।
इस हत्याकांड के बाद मोतीलाल तेजावत भूमिगत हो गए और महात्मा गांधी के कहने पर मोतीलाल तेजावत ने आत्म समर्पण कर दिया।
1929 से 1936 तक मोतीलाल तेजावत को उदयपुर जेल में बंदी बनाकर रखा गया
1963 में मोतीलाल तेजावत का देहांत हो गया।
मीणा जनजाति आंदोलन
जयपुर राज्य में यह आंदोलन मीणा जनजाति के लोगों के द्वारा चलाया गया।
कारण - जयपुर राज्य में बहते अपराधिक मामलों पर सरकार ने 2 कानून बनाए।
1924 - क्रिमिनल क्राइम एक्ट
1930- जयराम पेशा कानून
इन दोनों कानून के तहत मीणा जनजाति की जयपुर राज्य में अपराधिक जाति घोषित कर दिया तथा मीणा पुरुष, महिला व बच्चों को प्रतिदिन पुलिस थाने ने आकर हाजिरी देनी पड़ती थी।
मीणा जाति सुधार समिति - 1931
मीणा क्षत्रिय महासभा - 1933
इन दोनों कानून को समाप्त करने की मांग की गई
1944 में मीणा जनजाति का क्षत्रिय अधिवेशन नीम का थाना सीकर में हुआ इसके अध्यक्ष मुनि मगन सागर थे।
आखिर में सन 1952 में जयराम पेशा और क्रिमिनल क्राइम एक्ट कानून समाप्त किए
राजस्थान के प्रजामंडल आंदोलन
प्रजा की सरकार/ जनता की सरकार की मांग करने वाली संस्था प्रजामण्डल कहलाते थे।
अपनी मांगों को तथा अपनी सरकार बनाने के लिए देशी रियासतों में जो आंदोलन हुए उन्हें प्रजामंडल आंदोलन कहा जाता है।
उद्देश्य - देशी रियासतों में राजा की छत्रछाया में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना।
जयपुर प्रजामंडल - 1931 में कर्पूर चन्द पाटनी की अध्यक्षता में जयपुर प्रजामंडल का गठन हुआ।
राजस्थान में सर्वप्रथम इसी प्रजामंडल की स्थापना हुई। इस प्रजामंडल का उद्देश्य नैतिक तथा रचनात्मक कार्यों पर बल देना था। कुछ समय बाद यह संस्था निष्क्रिय हो गई।
प्रजामंडल का पुर्नगठन -1936
सेठ जमनालाल बजाज और हीरालाल शास्त्री के प्रयासों से जयपुर राज्य में प्रजामंडल का पुर्नगठन किया गया।
इसके अध्यक्ष चिरंजीलाल मिश्र ओर महासचिव हीरालाल शास्त्री को बनाया गया। 1938 में जयपुर प्रजामंडल के अध्यक्ष सेठ जमनालाल बजाज बने।
1939 में जयपुर की सरकार ने जयपुर प्रजामंडल को गैर कानूनी घोषित कर दिया ।
जेंटलमैन एग्रीमेंट - 1942 में जयपुर प्रजामंडल के अध्यक्ष हीरालाल शास्त्री और जयपुर के प्रधानमंत्री सर मिर्जा इस्माइल के बीच एक समझौता हुआ की जयपुर प्रजामंडल भारत छोड़ों आंदोलन में भाग नही लेगा।
आजाद मोर्चा - 1942 में जयपुर प्रजामंडल के कुछ सदस्यों ने मिलकर भारत छोड़ों आंदोलन में भाग लेने का निर्णय किया जिसे आजाद मोर्चा का नाम दिया गया। इस आजाद मोर्चा में बाबा हरिश्चंद शास्त्री, रामकरण जोशी, दोलतमल भंडारी थे।
मेवाड़ प्रजामंडल - मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना 24 अप्रैल 1938 में हुई। मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना बलवंत सिंह मेहता के घर साहित्य कुटीर घर में हुई थी। इस प्रजामंडल के प्रवर्तक माणिक्य लाल वर्मा और बलवंत सिंह मेहता थे। इस प्रजामंडल के अध्यक्ष बलवंत सिंह मेहता को बनाया गया। उपाध्यक्ष भूरेलाले बयां को नियुक्त किया गया।
भूरेलाल बयां को सराड़ा (उदयपुर) के किले में बंदी बनाया गया। सराड़ा किले को मेवाड़ का काला पानी कहा जाता था।
माणिक्य लाल वर्मा को कुंभलगढ़ दुर्ग में बंदी बनाया गया था जहां उन्होंने मेवाड़ का वर्तमान शासक पुस्तक लिखी थी।
माणिक्य लाल वर्मा को मेवाड़ का गांधी कहते थे।
1939 में महात्मा गांधी ने मेवाड़ सरकार को पत्र लिखकर मेवाड़ प्रजामंडल पर प्रतिबंध हटाने की मांग की। तथा वर्मा जी की जेल में तबियत खराब होने के कारण जेल से रिहा करने की मांग की।
मेवाड़ प्रजामंडल में माणिक्य लाल वर्मा ने बेगार प्रथा और बेलेठ प्रथा के विरुद्ध आंदोलन चलाया।
मेवाड़ सरकार ने इन दोनों प्रथाओं पर रोक लगा दी । मेवाड़ प्रजामंडल की यह पहली नैतिक जीत थी।
माणिक्य लाल वर्मा को जेल से रिहा कर दिया गया । मेवाड़ सरकार मेवाड़ प्रजामंडल से प्रतिबंध हटा दिया।
भारत छोड़ों आंदोलन में मेवाड़ प्रजामंडल ने सक्रिय भूमिका निभाई। माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में पुरुषों ने अपनी गिरफ्तारियां दी। नारायणी देवी वर्मा के नेतृत्व में महिलाओं ने अपनी गिरफ्तारियां दी।
अखिल भारतीय देशी लोक राज्य परिषद का छठा अधिवेशन 25 दिसंबर 1945 को उदयपुर में हुआ। पंडित जवाहर लाल नेहरू भी इस अधिवेशन में आए। इस अधिवेशन में मेवाड़ राज्य में उत्तरदायी शासन की मांग की गई।
बीकानेर प्रजामंडल
बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना 4 अक्टूबर 1939 को हुई थी। इसके अध्यक्ष मघाराम वैध और मंत्री लक्ष्मीदास स्वामी को बनाया गया।
इस प्रजामंडल को बीकानेर सरकार द्वारा 1939 में ही अवैध घोषित कर दिया गया।
1937 में लक्ष्मीदेवी, आचार्य देवी की अध्यक्षता में इसका पुर्नगठन हुआ।
बीकानेर राज्य परिषद की स्थापना - 22 जुलाई 1942
बीकानेर राज्य परिषद की स्थापना बाबू रघुवीर दयाल गोयल की अध्यक्षता में हुई।
जोधपुर प्रजामंडल / मारवाड़ प्रजामंडल
मारवाड़ का नाम जोधपुर 10 मई 1933 में महाराजा उम्मेदसिंह के काल में पड़ा।
मरुधर हितकारिणी सभा -
मरुधर हितकारिणी सभा की स्थापना 1915 में हुई थी। यह मारवाड़ की प्रथम राजनैतिक संस्था जिसने जनता के अधिकारों मांग की थी। 1918 में चादमंल सुराना द्वारा इस संस्था को निष्क्रिय कर दिया गया।
मारवाड़ सेवा संघ की स्थापना 1920 में जयनारायण व्यास द्वारा किया गया।
मारवाड़ हितकारिणी सभा का पुर्नगठन 1921 में किया गया।
तौल आंदोलन - 1921
मारवाड़ में एक सौ तौल का एक सेर होता था जबकि अन्य स्थान पर 80 तौल का एक सेर होता था।
मारवाड़ में व्यापारी वर्ग और जनता ने सरकार के विरुद्ध आंदोलन किया जिसे तौल आंदोलन कहा जाता है। आखिरकार सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा और यह मारवाड़ की जनता की प्रथम विजय थी।
पशुओं पर कर लगाना - 1923
मारवाड़ सरकार ने मादा पशुओं पर कर लगाना आरंभ कर दिया। जनता द्वारा इसके विरोध में आंदोलन किया गया तब सरकार ने यह आदेश रद्द कर दिया। इस आंदोलन में भी जनता की विजय हुई।
मारवाड़ लोक राज्य परिषद का गठन - 1929
1929 में जयनारायण व्यास द्वारा मारवाड़ लोक राज्य परिषद का गठन किया गया। यह अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की एक इकाई थी। इसका उद्देश्य उत्तरदायी शासन के लिए सम्मेलन करना, जुलूस निकालना ओर सभा करना था।
मारवाड़ लोक परिषद का अधिवेशन
जयनारायण व्यास ने 1929 में मारवाड़ राज्य लोक परिषद का जोधपुर में प्रथम अधिवेशन बुलाया। लेकिन सरकार ने इस अधिवेशन पर प्रतिबंध लगा दिया।
मारवाड़ लोक परिषद - 16 मई 1938
मारवाड़ लोक परिषद की स्थापना 16 मई 1938 को हुई थी इसके अध्यक्ष रणछोड़ दास गट्टानी थे और मंत्री अभय मल जैन थे। इस संस्था में मारवाड़ प्रजामंडल के रूप में कार्य किया। इस संस्था के दो अधिवेशन भी हुए।
मारवाड़ प्रजामंडल की स्थापना 1934 में भंवरलाल सर्राफ की अध्यक्षता में हुई।
मंत्री - अभय मल जैन
अन्य सदस्य - रणछोड़ दास गट्टानी, पुरुषोत्तम नैयर
उद्देश्य - उत्तरदायी शासन की स्थापना करना, शिक्षा का प्रसार प्रचार करना, जनता में राजनैतिक जागृति उत्पन करना।
कृष्णा दिवस - 1936 में कृष्णा दिवस मनाया गया।
जोधपुर शिक्षा दिवस - जोधपुर प्रजामंडल ने 21 जून 1936 में शिक्षा दिवस मनाया गया। मारवाड़ के प्रधानमंत्री डोनाल्ड डी एम फिल्ड ने स्कूल व कॉलेज की फीस में वृद्धि कर दी इसलिए मारवाड़ प्रजामंडल में यह दिवस मनाया गया।
जोधपुर नागरिक स्वतंत्रता संघ - 21 जून 1936
अध्यक्ष - रणछोड़ दास गट्टानी
यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक पूरक संस्था थी।
5 जून 1937 को मारवाड़ प्रजामंडल तथा जोधपुर नागरिक स्वतंत्रता संघ दोनों को अवैध घोषित कर दिया।
1938 में सुभाषचंद्र बोस जोधपुर आए।
डाबड़ा हत्याकांड - 13 मार्च 1947 डाबड़ा गांव डीडवाना
डाबड़ा के जागीरदार के द्वारा ना चाहते हुए भी 5-6 हजार किसानों की डाबड़ा गांव में सभा हुई। डाबड़ा के जागीरदार के सैनिकों ने इस सभा पर हमला किया इस कांड में पन्नाराम, चुन्नीलाल, निम्बी जोधा, नंदाराम आदि किसान मारे गए।
करौली प्रजामंडल - 1938
अध्यक्ष - त्रिलोकचंद माथुर
सदस्य - चिरंजीलाल शर्मा, कुंवर मदनसिंह
अलवर प्रजामंडल - 1938
हरिनारायण शर्मा
कुंजबिहारी मोदी
धौलपुर प्रजामंडल - 1936
कृष्णदत्त पालीवाल
श्री मूलचंद, ज्वाला प्रसाद
शाहपुरा प्रजामंडल - (शाहपुरा - भीलवाड़ा)
मुगल बादशाह शाहजहां के काल में बनी रियासत।
यह राजस्थान की सबसे छोटी रियासत थी।
स्थापना - 18 अप्रैल 1938
अध्यक्ष - अभय सिंह डांगी
अन्य सदस्य - रमेशचंद्र ओझा तथा लादूराम व्यास
नोट - शाहपुरा राजस्थान की ऐसी रियासत थी जिसने स्वतंत्रता से 1 दिन पहले ही 14 अगस्त उत्तरदायी शासन की स्थापना कर दी।
जैसलमेर प्रजामंडल -
स्थापना - 15 दिसम्बर 1945
मीठालाल व्यास के द्वारा जोधपुर राज्य में की गई।
किशनगढ़ प्रजामंडल - 1939 ई में स्थापित
कांतिलाल चोथनी एव जमालशाह
प्रतापगढ़ प्रजामंडल - 1936 चुनीलाल
1945 अमृतलाल
कुशलगढ़ प्रजामंडल - 1942
भंवरलाल निगम तथा कन्हैयालाल सेठिया द्वारा स्थापित
झालावाड़ प्रजामंडल - 1946
मांगीलाल - अध्यक्ष
मकबूल आलम - उपाध्यक्ष
कन्हैयालाल
कोटा प्रजामंडल -
हाड़ौती प्रजामंडल के नाम से 1934 में नयनूराम शर्मा तथा प्रभुलाल विजय के द्वारा।
1938 में नयनूराम शर्मा , अभिन्न हरी, तनसुखलाल मितल के द्वारा पुनगठित।
डूंगरपुर प्रजामंडल -
डूंगरपुर प्रजामंडल की स्थापना 26 जनवरी 1944 में भोगीलाल पंड्या की अध्यक्षता में हुई। इसके अन्य सदस्यों में माणिक्य लाल वर्मा, गौरीशंकर उपाध्याय, शिवलाल कोटडिया, हरिदेव जोशी थे।
भोगीलाल पंड्या - माणिक्य लाल वर्मा के शिष्य थे। यह वागड़ के गांधी के नाम से प्रसिद्ध थे। इनको वागड़ क्षेत्र में राजनैतिक जनजागृति लाने का श्रेय जाता है।
Note - डूंगरपुर सरकार राजस्थान की पहली सरकार थी जिसने पाठशालाओं तथा शिक्षण संस्था को दंडनीय अपराध मानकर कठोर रवैया अपनाया।
पुनावाड़ा हत्याकांड - मई 1947
पुनावाड़ा गांव (डूंगरपुर) में एक विद्यालय शिक्षक शिवराम भील को पीट पीट कर मार दिया गया
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