राजस्थान में वन्य जीव अभयारण्य
राजस्थान में 3 राष्ट्रीय उद्यान, 3 बाघ परियोजना, 26 वन्य जीव अभयारण्य और 33 आखेट निषेध क्षेत्र और 5 जंतुआलय है। भारत में भारतीय वन्य जीव कानून 1972 में लागू हुआ था। इसे राजस्थान में 1 सितम्बर को लागू किया गया।
रेड डाटा बुक में संकट ग्रस्त व विलुप्त प्रजाति और वनस्पतियों के नाम डाले गए।
भारत में बाघ संरक्षण योजना के जनक कैलाश सांखला थे। इन्हे टाइगर मेन के नाम से जाना जाता है।
राजस्थान में स्थित राष्ट्रीय उद्यान
रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान
यह राज्य का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है यह सवाई माधोपुर जिले में स्थित है। इसकी स्थापना 1957-58 में गई थी। इस अभ्यारण्य को 1 नवम्बर को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया। यह राष्ट्रीय उद्यान 392 वर्ग किमी में फैला है। सन 1974 में इसे विश्व वन्य जीव कोश द्वारा चलाए हुए टाइगर प्रोजेक्ट में शामिल किया गया। राजस्थान में सबसे पहले बाघ परियोजना इसी राष्ट्रीय उद्यान में शुरू की गई। यह भारत का सबसे छोटा बाघ अभयारण्य है।
इस उद्यान में प्रमुख रूप से बाघ, सांभर, चीतल, नीलगाय, चिंकारा पाए जाते है।
इस अभ्यारण्य में त्रि गणेश जी का मंदिर तथा जोगी महल स्थित है। इस अभ्यारण्य के वनों में मिश्रित वनस्पति के साथ धोंक मुख्य रूप से पाई जाती है।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
यह राज्य का दूसरा राष्ट्रीय उद्यान है, यह पूर्वी राजस्थान में भरतपुर जिले में स्थित है।
इसे 1955 में इसे अभ्यारण्य का दर्जा दिया गया। यह अभ्यारण्य गंभीरी ओर बाणगंगा नदियों के संगम पर स्थित है।
1981 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
1985 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत प्राकृतिक धरोहर की सूची में शामिल कर लिया गया।
पक्षियों का स्वर्ग के नाम से प्रसिद्ध केवलादेव घना पक्षी विहार एशिया की सबसे बड़ी प्रजनन स्थली है।
इस राष्ट्रीय उद्यान में शीतकालीन में साइबेरिया से दुर्लभ साइबेरियन सारस आती है। इसके अलावा यहां पर हंस, सारिका, सारंग, गीज, लेपबिंग, शुक हंसावर ओर रोजी पेलिकन जैसे पक्षी पाए जाते है। लाल गर्दन के तोते यहां पाए जाते है। यहां पर पाईथन पॉइंट है।
मुकंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान
मुकंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान कोटा में स्थित है। वर्तमान में इसका नाम राजीव गांधी राष्ट्रीय उद्यान है। यह कोटा और चितौड़गढ़ जिले में स्थित है। यह 199.55 वर्ग किमी में फैला है। 9 जनवरी 2012 में इसको राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया।
यहां पर कोटा नरेश द्वारा स्थापित अबला मिनी का महल है । यहां पर गुप्तकालीन मंदिर के खंडहर भी है। दर्रा अभ्यारण्य व जवाहर सागर अभ्यारण्य को मिलाकर मुकंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया। यहां पर मुकंदरा की पहाड़ियों में आदिमानव के शेलाश्रय एव उनके द्वारा रेखाकिंत शैलचित्र मिलते है।
10 अप्रैल 2013 को मुकंदरा हिल्स में कोटा, झालावाड़, बूंदी ओर चितौड़गढ़ जिले का क्षेत्र मिलाकर बाघ परियोजना लागू की थी।
राजस्थान में स्थित अभ्यारण्य
मरू उद्यान जैसलमेर
मरू उद्यान जैसलमेर जिले में स्थित है इसकी स्थापना 8 मई 1981 में को गई। इसका क्षेत्रफल 3162 वर्ग किमी. है यह बाड़मेर ओर जैसलमेर जिले में फैला हुआ है।
मरू उद्यान में आकल वुड फोसिल पार्क स्थित है।
इस क्षेत्र में 18 करोड़ वर्ष पुराने पेड़ पौधे के काष्ठ अवशेष फैले हुए है।
यहां पर राजस्थान का राज्य पक्षी गोडावण (ग्रेट इंडियन बर्ड) पाया जाता है। इस उद्यान में चिंकारा, चौसिंगा काले हिरण आदि प्रमुख है। मरू उद्यान में उभयचर जन्तु समूह टॉड की प्रजाति एंडरसंस टॉड पाई जाती है। यहां पर रेगिस्तान सांपों में पिवणा कोबरा, रस्लस वाइपर पाए जाते है।
सरिस्का अभयारण्य अलवर
सरिस्का अभयारण्य अलवर जिले में स्थित है। यह अभ्यारण्य 492 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी स्थापना 1900 में हुई। 1955 में इसे राज्य सरकार में अभ्यारण्य घोषित किया।
सरिस्का अभयारण्य टाइगर प्रोजेक्ट में शामिल राजस्थान का दूसरा अभ्यारण्य है।
इस अभ्यारण्य में महाराजा जयसिंह द्वारा निर्मित सरिस्का पैलेस होटल स्थित है। इस अभ्यारण्य में बाघ, सांभर, चीतल, चिंकारा, नीलगाय, सुअर आदि पाए जाते है।
सरिस्का अभयारण्य में कासना और कांकनबाड़ी पठार स्थित है। यहां पर धोक और लापला वनस्पति पाई जाती है
इस अभ्यारण्य में भृत्रती की गुफा, नीलकंठ महादेव का मंदिर, पांडुपोल हनुमान जी, तालवृक्ष आदि स्थित है।
सरिस्का अभयारण्य में आरटीडीसी द्वारा संचालित होटल टाइगर डेन स्थित है।
तालछापर अभ्यारण्य
ताल छापर अभ्यारण्य चुरू जिले में स्थित है। यह काले हिरणों के लिए प्रसिद्ध है।
यहां पर प्रतिवर्ष हजारों कुर्जा ओर क्रोमन पक्षी शरण लेने आते है।
वर्षा ऋतु में यहां पर एक विशेष नर्म घास मोबिया साइप्रस रोटंड्स होती है।
ताल छापर अभ्यारण्य की क्षारीय भूमि में लाना नामक झाड़ी होती है।
इस अभ्यारण्य में भेसोलाव ओर डूंगोलाव आदि तालाब है।
सीतामाता अभ्यारण्य
सीतामाता अभ्यारण्य प्रतापगढ़ जिले में स्थित है। यह अभ्यारण्य 423 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
इस अभ्यारण्य में माता सीता का मंदिर है इसलिए इसका नाम सीतामाता अभ्यारण्य रखा गया। यह अभ्यारण्य एंटीलॉप प्रजाति का दुर्लभतम जीव चौसिंगा और उड़न गिलहरी के लिए प्रसिद्ध है।
इस अभ्यारण्य में बांस और सागवान पाए जाते है।
भारत में हिमालय के बाद सीतामाता अभ्यारण्य में ऐसा क्षेत्र है जहा वन औषधियां पायी जाती है।
यहां पर लव कुश नामक दो जल के स्रोत है।
सीतामाता अभ्यारण्य में मुख्य रूप से जाखम नदी तथा भूदो, सीतामाता, टंकिया आदि छोटी नदियां है। यहां पर कर्मयोगिनी नदी का उदगम स्थल है।
जाखम नदी पर स्थित जाखम बांध सीतामाता अभ्यारण्य में स्थित है।
यह राष्ट्रीय राजमार्ग 56 पर स्थित है। यहां रात्रिचर प्राणी आड़ा हूला है।
जवाहर सागर अभ्यारण्य
जवाहर सागर अभ्यारण्य कोटा जिले में स्थित है। इसकी स्थापना 1975 में हुई थी इसका क्षेत्रफल 100 वर्ग किमी. है।
यह अभ्यारण्य घड़ियाल और मगरमच्छ की प्रजन्न स्थली के रूप में प्रसिद्ध है। यह अभ्यारण्य जैव विविधता के सरक्षण के लिए प्रसिद्ध है।
शेरगढ़ अभ्यारण्य
शेरगढ़ अभ्यारण्य बारां जिले में स्थित है। इस अभ्यारण्य को 1983 में दर्जा दिया गया यह 81.67 वर्ग क्षेत्र में फैला हुआ है।
यह चीता, तेंदुआ, जंगली सुअर, चीतल तथा सांपों के लिए प्रसिद्ध है।
बंध बारेठा अभ्यारण्य
बंध बारेठा अभ्यारण्य भरतपुर जिले में स्थित है। बाघों के लिए प्रसिद्ध इस अभ्यारण्य को 1985 को अभ्यारण्य घोषित किया गया है।
अरावली पर्वतमाला में बहने वाली नदियों को रोककर पुराने समय में यहां बांध बनाया गया उसी के नाम पर बंध बारेठा रखा गया।
यह स्थान केवलादेव अभ्यारण्य के पास में ही स्थित है।
गजनेर अभ्यारण्य
यह अभ्यारण्य बीकानेर जिले में स्थित है। यह अभ्यारण्य चिंकारा, काला हिरण, नीलगाय तथा देशी विदेशी पक्षी पाए जाते है।
गजनेर अभ्यारण्य बटबड़ पक्षी ( इंपीरियल सेंड गाउज ) के लिए प्रसिद्ध है जिस स्थानीय भाषा में रेत का तीतर भी कहते है।
कैला देवी अभ्यारण्य
कैला देवी अभ्यारण्य करौली जिले में स्थित है।
कैलादेवी को सन 1983 को अभ्यारण्य का दर्जा दिया गया। यह 676.82 वर्ग किमी. में फैला हुआ है ।
इसमें बघेरा, रीछ, सांभर और चीतल पाए जाते है।
नाहरगढ़ अभ्यारण्य
नाहरगढ़ अभ्यारण्य जयपुर जिले में स्थित है। यह मुख्य रूप से चिंकारों के लिए प्रसिद्ध है।
यहां एक जैविक पार्क भी स्थापित किया गया है। 1982 ई में इसे अभ्यारण्य घोषित किया गया है।
डोला धावा अभ्यारण्य
यह अभ्यारण्य जोधपुर से 45 किमी. दूर बाड़मेर मार्ग पर स्थित है ।यह के कृष्ण मृग प्रसिद्ध है।
रावली टाडगढ़ अभ्यारण्य
रावली टाडगढ़ अभ्यारण्य अजमेर, पाली ओर राजसमंद जिले में 495 वर्ग किमी. में फैला हुआ है।
यहां बघेरा, रीछ, जरख, गीदड़ आदि पाए जाते है।
अमृता देवी कृष्णमृग अभ्यारण्य
यह अभ्यारण्य जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में लगता है।
यहां पर लुप्त हो रहे हिरण प्रजाति के 500 काले हिरण है।
जयसमंद वन्यजीव अभयारण्य
उदयपुर के समीप 52 किमी. जयसमंद झील के पास में यह अभ्यारण्य स्थित है। इस अभ्यारण्य की 1957 में स्थापना की गई। यहां पर मुख्यत लकड़बग्गा, सियार, बघेरा, चीतल आदि पाए जाते है।
माचिया सफारी
माचिया सफारी अभ्यारण्य जोधपुर जिले में स्थित है।
इस अभ्यारण्य में चिंकारा, काले हिरण, नील गाय आदि पाए जाते है। यहां पर राज्य का प्रथम वानस्पतिक उद्यान विकसित किया गया है।
बस्सी अभ्यारण्य
चितौड़गढ़ जिले के समीप यह अभ्यारण्य स्थित है यह बाघों के लिए प्रसिद्ध स्थान है।
माउंट आबू अभ्यारण्य
माउंट आबू अभ्यारण्य सिरोही जिले में स्थित है।
यहां के जंगली मुर्गे प्रसिद्ध है।
इस अभ्यारण्य में डिकिलप्टेरा आबू एनसिस घास पाई जाती है। इसे 2009 में राजस्थान का प्रथम इको सेंसेटिव जोन घोषित किया गया।
कुंभलगढ़ अभ्यारण्य
कुंभलगढ़ अभ्यारण्य उदयपुर से 84 किमी. दूर राजसमंद और पाली जिले में स्थित है। यह अभ्यारण्य रीछ, भेड़ियों, जंगली सुअर व मुर्गों के लिए प्रसिद्ध है। इस अभ्यारण्य में 25 वुड फोसिल्स स्थित है। भेड़िए प्रजन्न के लिए यह अभ्यारण्य पूरे देश में प्रसिद्ध है।
इस अभ्यारण्य में रणकपुर का जैन मंदिर स्थित है।
फुलवारी की नाल अभ्यारण्य
फुलवारी की नाल अभ्यारण्य उदयपुर जिले में स्थित है।
इस अभ्यारण्य से मानसी वाकल नदी का उदगम होता है।
इस अभ्यारण्य में बाघ, चीतल, सांभर पाए जाते है।
वन विहार अभ्यारण्य
यह अभ्यारण्य धौलपुर जिले में स्थित है, इसको रामसागर वन विहार अभ्यारण्य के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण धौलपुर के महाराजा ने 1935-36 ई में करवाया।
इस अभ्यारण्य में तालाबशाही झील है। इस झील के किनारे दुर्लभ साइबेरियन सारस आश्रय लेते है।
जमवा रामगढ़ अभ्यारण्य जयपुर
राम सागर धौलपुर
सज्जनगढ़ अभ्यारण्य उदयपुर
केसरबाग अभ्यारण्य धौलपुर
दर्रा अभ्यारण्य कोटा
सवाई मानसिंह अभ्यारण्य सवाई माधोपुर
राजस्थान में स्थित जंतुआलय
जयपुर जंतुआलय - यह राजस्थान का सबसे पुराना जंतुआलय है। इस जंतुआलय की स्थापना 1876 ई में रामनिवास बाग के मध्य की गई।
यह जंतुआलय मगरमच्छ प्रजनन के लिए प्रसिद्ध है।
उदयपुर जंतुआलय - यह जंतुआलय उदयपुर में गुलाबबाग में स्थित है। इसकी स्थापना 1878 की गई । यहां पर बाघ, बघेरा, भालू सहित 13 किस्म के वन्य जीव संरक्षण पा रहे है।
बीकानेर जंतुआलय - बीकानेर में इस जंतुआलय की स्थापना 1922 में सार्वजनिक उद्यान में की गई।
जोधपुर जंतुआलय - जोधपुर जंतुआलय की स्थापना 1936 में सार्वजनिक उद्यान में की गई। यह जंतुआलय गोडावण के प्रजनन के लिए प्रसिद्ध है। यह जंतुआलय अपनी पक्षिशाला के लिए प्रसिद्ध है।
कोटा जंतुआलय - इस जंतुआलय की स्थापना 1954 में की गई। इस जंतुआलय में कोटा, झालवाड़, बूंदी बारां जिले में मिलने वाले जीवों को रखा जाता है।
राजस्थान में 33 आखेट निषेध क्षेत्र
1. बज्जू - बीकानेर
2. देशनोक - बीकानेर
3. जोड़ावीर - बीकानेर
4. दियात्रा - बीकानेर
5. मुकाम - बीकानेर
6. गंगवाना - अजमेर
7. सोंखलिया - अजमेर
8. तिलोरा - अजमेर
9. लोहावट - जोधपुर
10. फिटकाशनी - जोधपुर
11. साथिन रोड - जोधपुर
12. जम्भेश्वर - जोधपुर
13. डेंचू - जोधपुर
14. डोली - जोधपुर
15.गुढ़ा - जोधपुर
16.धोरीमन्ना - बाड़मेर
17. उज्जला - जैसलमेर
18. रामदेवरा - जैसलमेर
19. संथाल सागर - जयपुर
20. महलां - जयपुर
21. कनकसागर - बूंदी
22. संवत्सर कोटसर - चुरू
23. सांचौर - जालौर
24. सोरासन - बारां
25. मेनाल - प्रतापगढ़
26. जवाई बांध - पाली
27. कंवल - सवाई माधोपुर
28. जरोंदा - नागौर
29. बागदेड़ा - उदयपुर
30. रानीपुरा - टोंक
31. जोड़ियां - अलवर
32. रोटू - नागौर
33. बरदोद - अलवर
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