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Sunday 21 March 2021

राजस्थानी वेशभूषा ( पहनावा )

       राजस्थानी वेशभूषा ( पहनावा ) 

राजस्थानी वेशभूषा और पहनावा

राजस्थान में विभिन्न धर्म और संप्रदाय के लोग रहते है। विभिन्न संप्रदाय के लोग रहने के कारण यहां अलग अलग वेशभूषा और रहन सहन है। प्राचीन काल में भी वेशभूषा और पहनावे का चलन था। राजा - महाराजाओं के काल  पगड़ियां, जामा, ब्रिजेस आदि का प्रचलन था।


 पुरुष वेशभूषा - राजस्थान में कालीबंगा व आहड़ सभ्यता से ज्ञात होता है की उस समय सूती वस्त्र का प्रचलन था।

खिलौने के अवशेष से पता चलता है उस समय बच्चे वस्त्र नही पहनते थे।

जंगली जनजातियां पशुओं की खाल के अतिरिक्त कुछ मात्रा में वस्त्रों  का प्रयोग करती थी।

साधु सन्यासी भी बहुत कम वस्त्रों का प्रयोग करते थे।

डॉ गोपीनाथ शर्मा के अनुसार - 

शिकारी केवल धोती पहनते थे।

किसान और श्रमिक लंगोटी के ढंग की ऊंची बांध वाली धोती पहनते थे।

ब्राह्मण लटकती हुई धोती और चादर काम में लाते थे।

व्यापारियों में लंबी अंगरखा, धोती और पगड़ी पहनने का प्रचलन था।

सैनिक जांघिया या छोटी धोती , छोटी पगड़ी व कमरबंध का प्रयोग करते थे।

पहलवान केवल कच्छा पहनते थे।

सन्यासी उत्तरीय और कोपिन का प्रयोग करते थे।

तत्कालीन देवी देवताओं की मूर्तियों से ज्ञात होते हैं की राजपरिवार के व्यक्तियों में कामदार धोती और दोनों किनारों से झूलता हुआ बारीक दुपट्टे का प्रचलन था।

युद्ध में भाग लेने वाले व्यक्ति लंबी अंगरखी, सिर पर चमकीला व मुकुट वाली पगड़ी पहनते थे।

शासकों के द्वारा मुख्यत मुकुट एव पल्ले वाली पगड़ी, दुप्पटे, कसीदारी की धोतियां और मोटें अंगरखों का प्रयोग करते थे।


मुगलकाल में राजस्थानी वेशभूषा 

राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में अटपटी, अमरशाही, उदयशाही, खंजरशाही, शिवशाही, विजयशाही आदि पगड़ियों का चलन था।

सुनारों के द्वारा आंटे वाली पगड़िया पहनी जाति थी।

बंजारों के द्वारा मोटी पट्टेदार पगड़िया पहनी जाति थी।

विवाह के अवसर पर मोठड़े को पगड़ी पहनी जाति थी।

दशहरे के त्यौहार पर मदिल पगड़ी पहनी जाती थी।

होली के अवसर पर छपाई वाली पगड़ी पहनी जाती थी।


Note - मुगलकाल में लोग विभिन्न प्रकार की अंगरखी पहनते थे। मुगलकाल में अंगरखी को तनसुख, दुतई, मिरजाई, डोढी, कानो, डगलो आदि नाम से जाना जाता था।


                        प्रमुख पगड़ियां  

वीरता, प्रेम व बलिदान की पगड़ी मेवाड़ क्षेत्र की विशेष पहचान है। जो राजस्थान के पुरुष पहनते है। श्रावण में लहरिए की पगड़ी, विवाहोत्सव पर मोठडे की पगड़ी, दशहरे पर मदील तथा होली पर फूल पत्ती की छपाई की पगड़ी, दिवाली पर केसरिया व पीले रंग की पगड़ी पहनी जाति है।


पगड़ियो के प्रकार - जसवंतशाही, चुड़ावत शाही, भीमशाही, मांडशाही, राठौड़ी, मानशाही, हमीरशाही, मेवाड़ी इत्यादि।

सर्वाधिक लोकप्रिय पगड़ी मेवाड़ी है, मेवाड़ के महाराणा पगड़ी बांधने वाले व्यक्ति को छापदार कहते थे।

जयपुर की राजशाही पगड़ी जो लाल रंग के लहरिए की रंगरेज पगड़ी कहलाती थी प्रसिद्ध है।

उदयशाही, अमरशाही, अस्सीशाही व रूपशाही पगड़ियां भी प्रसिद्ध है।

आदिवासियों में पगड़ी के स्थान पर बांधे जाने वाला वस्त्र पोतिया कहलाता है।


पुरुषों द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र 

जामा - शरीर के ऊपरी भाग में पहने जाने वाला वस्त्र जामा कहलाता है, जो घुटनों तक होता है। 

अकबर ने इसे शरबागति और अबुल फजल ने इसे टकुचिया कहा। शादी विवाह तथा दरबार में चाकदार जामा पहना जाता है जिसे कचोटिया जामा कहते है।

चोगा - अंगरखी के ऊपर पहने जाने वाला वस्त्र चोगा कहलाता था, जो गाउन जैसा होता है। जयपुर के शासक सवाई माधोसिंह का चोगा विश्व का सबसे बड़ा चोगा जो वर्तमान में सीटी पैलेस में रखा हुआ है।


अंगरखी / बुगतरी 

कमर के ऊपर काले रंग का वस्त्र जिस पर सफेद धागे से फूल व ज्यामिति बनी होती थी , अंगरखी कहलाती है। इसे पॉकेट युक्त बनियान भी कह सकते है। भीलों में पहनी जाने वाली तंग धोती देपाड़ा कहलाता है। सहरिया जनजाति में अंगरखा को सलूका कहते है।


ब्रिजेस / रिजस 

चूड़ीदार पायजामे की तरह मोटे कपड़े का बना होता है। जो घुटनों से कमर तक छोड़ा होता है और नीचे से संकरा होता है। युद्ध में, शिकार में व पोलो खेलते समय इसको पहना जाता था। इसे सामान्यत मेवाड़ और मारवाड़ के पुरुषों द्वारा पहना जाता है।


आतमसुख

               सर्दी में बचने हेतु इसका प्रयोग चोगे के ऊपर ओढ़ने के लिए किया जाता है। आतमसूख गर्म कपड़े और रूई का बना होता है।


कमरबंध 

          जामा ओर अंगरखी के ऊपर कमर पर बांधा जाता है जिसमे तलवार व कटार रखी जाती है। कमरबंध को पटका भी कहा जाता है।


पछेवड़ा 

        सर्दी से बचाव हेतु चादरनुमा होता है जो ऊपर से ओढ़ा जाता है।


घुघी 

     यह ऊन का बना होता है जो शरीर के ऊपरी भाग पर ओढ़ा जाता है।


साफा 

       पगड़ी से मोटा व लंबाई में छोटा होता है। आदिवासी साफे को फेंटा कहा जाता है। सहरीया जनजाति साफे को खपटा कहा जाता है। मलायगिरी का साफे की रंगाई चंदन से की जाती है यह साफा वर्षा ऋतु में ओढ़ा जाता है।


धोती 

      कमर से घुटनों तक पहने जाने वाला वस्त्र धोती कहलाता है। जो पुरुष पहनते है सहरियां जनजाति में धोती को पछा कहा जाता है। सहरिया जनजाति में घुटनों तक की धोती को समुका कहते है । भीलों में तंग धोती को ढेपाड़ा कहा जाता है। कमर पर बांधी जाने वाली धोती खोयतु कहलाती है।


अंगोछा 

         धूप से बचने के लिए पुरुष सिर पर अंगोछा बांधते है ग्रामीण क्षेत्र में दाह संस्कार तथा रिश्तेदारों के यहां जाते समय अंगोछा रखा जाता है। भीलों द्वारा सिर पर पहनने वाले अंगोछा चीर तथा कमर पर बांधे जाने वाला अंगोछा फालू कहलाता है।


       महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र 

साड़िया -  कमर से पैरों तक पहनी जाती है इनके प्रकार प्रमुख है।

कोटा डोरिया साड़ी - इसे राजस्थान की बनारसी साड़ी कहते है। यह कैथून ( कोटा ) मांगरोल (बारां) की प्रसिद्ध है इसे मलमल व मसूरदी की साड़ी कहते है। 

सूठ की साड़ी - यह साड़ी सवाई माधोपुर की प्रसिद्ध है जिसमे पके रंग का प्रयोग किया जाता है।

फूल पत्तियां की साड़ी - यह साड़ी जोबनेर जयपुर की प्रसिद्ध है।

जामशाही साड़ी - इस साड़ी में लाल जमीन पर फूल पत्तियां की बेल बनाई जाती है । महिलाएं जामशाही साड़ी शादी के समय पहनती है।


पोमचा 

       पोमचा जयपुर का प्रसिद्ध है। शेखावाटी में इसे पीला कहते है। जो वंशवृद्धि का प्रतीक है। पीला पुत्र जन्म पर प्रसूति महिला द्वारा ओढ़ा जाता है । चीड़ का पोमचा काले रंग का होता है जो विधवा महिला ओढ़ती है ।


                        ओढ़नी 

      महिलाओं द्वारा ओढ़नी सिर पर ओढ़ी जाति है जो कई प्रकार की होती है।

डुंगरशाही ओढ़नी - इस ओढ़नी पर बड़े बड़े पहाड़ों व डुंगरों की आकृति होती है। डुंगरशाही ओढ़नी जोधपुर की प्रसिद्ध है।

लहर भांत की ओढ़नी - इस ओढ़नी पर ज्वार के दानों जैसी बिंदियों से लहरिया बनाया जाता है।

तारा भांत की ओढ़नी - भूरी लाल जमीन जैसी किनारों पर छोटी छोटी तारे के आकार की बिंदिया होती है उसे तारा भांत की ओढ़नी कहते है। यह ओढ़नी आदिवासी महिला द्वारा ओढ़ी जाती है जिसे फुंदड़ी कहा जाता है।

केरी भांत की ओढ़नी - जमीन लाल रंग की सफेद व केसरी रंग की ज्वार की बिंदिया होती है। किनारे पर केरी के चित्र बने होते हैं। यह आदिवासी महिला पहनती है।

ज्वार भांत की ओढ़नी -  सफेद रंग की जमीन पर ज्वार के आकार की छोटी - छोटी बिंदिया कपड़े के दोनों ओर बनाई जाती है।

कटकी - इसे पावली भांत की ओढ़नी कहते हैं कटकी पर लाल जमीन पर काले रंग  की सफेद बुटिया होती है, इसे कंवारी व विवाहित महिलाएं ओढ़ती है।


आदिवासी महिलाओं के वस्त्र 

फड़का - केथोड़ी महिला द्वारा मराठी अंदाज में साड़ी पहनी जाती है।

रैजा - सहरिया स्त्री का विवाह का वस्त्र 

खुसनी - कंजर विवाहित स्त्री का कमर का वस्त्र 

चक्का सवेरा - कालबेलिया जाती की महिला का वस्त्र 

पिरिया - भील दुल्हन का पीला घाघरा 


बखतरी - ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों के शरीर के ऊपर पहनने वाला वस्त्र 

लप्पा, लप्पी, किरण व बांकड़ी - गोटे के प्रकार 

दामणी - यह एक ओढ़नी होती है।

लहरिया - जयपुर का प्रसिद्ध है श्रावण महीने में लहरिया पहना जाता है।

लुगड़ा - यह एक ओढ़नी का प्रकार है । लुगड़ा लक्ष्मणगढ़ (सीकर) मुकंदगढ़ (झुंझुनूं) का प्रसिद्ध है।

कुर्ती - कांतली -  यह कमर के ऊपर पहने जाती है कांचली के ऊपर कुर्ती पहनी जाती है।

तिलका - मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहने जाने वाला सफेद रंग का वस्त्र, सलवार के ऊपर पहना जाता है नीचे घुटनों तक होता है।


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