स्कूली बच्चो पर हावी ऑनलाइन पढ़ाई
इस महामारी की वजह से स्कूलों ओर शिक्षण संस्थाओं को बन्द हुए 3 महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है।
इन शिक्षण संस्थाओं के बन्द होने से बच्चो का भविष्य अधर में लटका हुआ है। कब वापस शैक्षिक गतिविधियां चालू होगी कोई कुछ नहीं कह सकता।
शिक्षण संस्थाओं के बन्द होने से आजकल ऑनलाइन पढ़ाई का दौर चल पड़ा है। जिधर देखो वो ही ऑनलाइन पढ़ाई पर जोर दे रहा है।
आज प्रथम कक्षा से लेकर ग्रेजुएट लेवल ओर प्रतियोगिता परीक्षा के लिए भी online कक्षाएं चल रही है।
छोटे - छोटे बच्चो को जिनको हम अंगुली पकड़कर स्कूल में छोड़ने जाते है उनकी भी ऑनलाइन कक्षाएं चलाई जा रही है। और इन ऑनलाइन classes के नाम पर फीस वसूली जा रही है।
बच्चे ये classes मोबाइल या लैपटॉप के माध्यम से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए लेते है। जिससे उनको एक लम्बे समय तक मोबाइल या लैपटॉप की स्क्रीन को देखना पड़ता है ओर उनका स्क्रीन टाइम बढ़ जाता है।
अमेरिकन अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने बच्चो के स्क्रीन टाइम के सम्बन्ध में कुछ दिशा निर्देश जारी किए हैं।
▪️ 18 महीने के कम बच्चे स्क्रीन का इस्तेमाल नहीं करे।▪️ 18 से 24 महीने के बच्चे को माता पिता उच्च गुणवत्ता वाले प्रोग्राम दिखाए।
▪️ 2 से 5 साल के बच्चे एक घंटे से ज्यादा स्क्रीन का इस्तेमाल नहीं करे।
▪️ 6 साल से ओर उससे ज्यादा उम्र के बच्चो के स्क्रीन देखने का समय सीमित हो।
छोटे बच्चो पर इन ऑनलाइन पढ़ाई से बहुत दुष्प्रभाव पड़ रहा है। मोबाइल से आंखो की रोशनी खराब हो रही है। जो अध्यापक कहते थे बच्चो को मोबाइल मत दिया करो वो ही आज कह है बच्चो को ऑनलाइन classes में पढ़ाओ।
मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से हो रहा तनाव
एक रिसर्च के मुताबिक मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल से बच्चो में एकाग्रता ओर विकास को बाधित करता है जिससे बच्चो में मानसिक तनाव, खुदकुशी जैसी प्रवृति बढ़ती है।
बच्चो को 15 घंटे तक मोबाइल की लत हो गई है जहां पहले 2-3 घंटे थी। ज्यादातर समय मोबाइल से चिपके रहने से उनमें कई तरह के बदलाव देखने को मिले है ।
नोमोफोबिया जैसे लक्षण बच्चो में
जयपुर के डॉक्टर्स के रिसर्च के अनुसार 65% बच्चो में मोबाइल या लैपटॉप की नशे की लत हो गई है वो एक या दो घंटे भी मोबाइल या लैपटॉप से दूर नहीं हो पा रहे है। डॉ के अनुसार इस लत को नोमोफोबिया कहते है।
अभिभावक ध्यान दे इन बातों का
ऐसे में ध्यान देना जरूरी है ऑनलाइन क्लासेज बहुत लंबी ना हो।
बच्चो को छोटी छोटी फिजिकल एक्टिविटीज के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
बच्चो में आए बदलाव को नोटिस करे, चिड़चिड़ापन जैसे लक्षणों पर ध्यान देवे।
स्क्रीन को बच्चो से थोड़ी दूरी पर रखे।
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