राजस्थान के लोक देवता
राजस्थान में बहुत सारे लोक देवता हुए है। जो महापुरुष जाती पान्ती , छुआ छूत, गोरक्षक, समाज में फैली हुई कुरीतियों को दूर करना, अपनी आलौकिक शक्तियों से जन मानस का दुख दूर किया वे जन मानस में पूजे जाने लगे ओर लोक देवता कहलाए।
मारवाड़ भू भाग में पांच लोकदेवताओं को पंच पीर कहा गया अर्थात इनको हिन्दू ओर मुसलमान दोनों धर्म के लोग मानते है।
राजस्थान के प्रमुख लोक देवता
पाबू जी, हड़बू जी, गोगा जी, रामदेव जी, मेहा जी
इन पर एक दोहा भी है।
"पाबू, हड़बु, रामदेव, मांगलिया मेहा
पांचों पीर पधार, जो गोगा जी जेहा।।"
राजस्थान में अवतारित लोक देवता
रामदेव जी - श्री कृष्ण भगवान
पाबू जी - लक्ष्मण भगवान
देवनारायण जी - विष्णु भगवान
वीर कल्लाजी - शेषनाग
उपनाम - रूणेचा रा धनी, रामसापीर, लीले घोड़े वाले बाबा
बाबा रामदेव राजस्थान के पंच पीरो में आते है।
इनका जन्म 1405 ई में बाड़मेर की शिव तहसील के उडूकाश्मीर में हुआ था।
बाबा रामदेव के पिता का नाम अजमाल जी तंवर ओर माता का नाम मेंणादे था।
इनकी पत्नी का नाम नेतल दे था इनका विवाह अमरकोट पाकिस्तान में हुआ था।
बाबा रामदेव ने बाल्यावस्था में भैरव राक्षक का वध किया था।
इनकी घोड़ी का नाम लिलन था।
बाबा रामदेव के गुरु बालीनाथ जी थे इनका मंदिर मसूरिया पहाड़ी जोधपुर में बना हुआ है।
बाबा रामदेव ने छुआछूत, उंच नीच का विरोध किया था।
बाबा रामदेव ने 1458 ई में जीवित समाधि रूणेचा में ली थी। इनकी समाधि पर भाद्रपद शुक्ल पक्ष की दूज को विशाल मेले का आयोजन होता है।
रामदेव के चरण चिन्ह की पूजा होती है जिन्हे पगल्या कहा जाता है।
इनके मेले का प्रमुख आकर्षण तेरहताली नृत्य है।
रामदेव जी ने कामडिया पंथ की शुरुआत की थी।
रामदेव जी के मंदिर को देवता कहा जाता है, मंदिर पर 5 रंग की ध्वजा फहराई जाती है उसे नेजा कहा जाता है।
बाबा रामदेव द्वारा रचित काव्य चौबीस बनिया है।
रामदेव के जागरण को जम्मा कहा जाता है।
मसूरिया पहाड़ी - जोधपुर
बिराठिया - पाली
खुंडियास - अजमेर
छोटा रामदेवरा गुजरात में स्थित है।
गोगा जी चौहान राजस्थान के पंच पीरो में प्रमुख है।
इनका जन्म वि. स. 946 को ददरेवा चूरू में हुआ था।
इनके पिता का नाम जेवर जी चौहान ओर माता का नाम बाछल देवी था।
इनके गुरु गोरखनाथ जी थे।
गोगाजी का विवाह राजकुमारी केलम दे से होना तय हो गया था पर विवाह से पूर्व ही केलमदे को सर्प ने डस लिया तब गोगाजी ने अपने मंत्रो से केलम दे को बचाया था।
गोगाजी को सांपो के देवता के रूप में पूजा की जाती है।
कायमखानी समाज इन्हे जाहरपीर ( देवता के सम्मान ) के नाम से पूजा करता है।
गोगाजी ने महमूद गजनवी से युद्ध किया था इस युद्ध में गोगाजी वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
युद्धभूमि में लड़ते हुए जहां पर गोगाजी का सिर गिरा वो स्थान शीशमेडी ददरेवा ( चूरू ) ओर जहां पर धड़ गिरा वो स्थान धुरमेडी ( नोहर हनुमानगढ़ ) कहलाया।
इस युद्ध में गोगा जी ने बिना सिर के गजनवी की सेना से युद्ध किया था तब गजनवी ने कहा कि यह साक्षात जाहरपीर के समान लड़ रहा है।
गोगाजी का प्रमुख स्थान गोगामेड़ी नोहर में है यहां पर बना मंदिर मकबरेनूमा है इसके मुख्य दरवाजे पर बिस्मिलाह अंकित है।
मंदिर में पुजारी हिन्दू ओर मुसलमान दोनों होते है।
यहां पर प्रतिवर्ष गोगानवमी को मेला लगता है।
गोगा जी का थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है इन पर एक कहावत है -
गांव गांव खेजड़ी ओर गांव गांव गोगो।
गोगाजी की ओल्डी सांचौर जालोर में स्थित है।
इनको लक्ष्मण जी का अवतार माना जाता है।
इनका जन्म भूंडेल (नागौर) में हुआ।
इनके गुरु का नाम बालीनाथ था।
यह जोधपुर के राजा राव जोधा के समकालीन थे।
हड़बूजी रामदेव जी के मोसरे भाई थे।
इनका प्रमुख पूजा स्थल बेंगठी गांव जोधपुर में स्थित है।
यहां पर हड़बूजी की बैलगाड़ी की पूजा होती है, इसी बैलगाड़ी से हड़बूजी पंगु गायों के लिए हरा चारा लाते थे।
इनके मंदिर में पुजारी सांखला राजपूत होते है।
पाबूजी राठौड़ मारवाड़ के शासक राव सीहा के वंशज माने जाते है।
इनका जन्म 1239 ई में कोलुमंड जोधपुर में हुआ था।
इनके पिता का नाम धांधल की राठौड़ तथा माता का नाम कमलादे था।
इनका विवाह सुप्यार दे के साथ हुआ था।
विवाह मंडप से ही देवल चारणी की गायों को अपने बहनोई से छुड़ाते समय युद्ध में वीर गति को प्राप्त हो गए है।
इनकी समाधि देचू गांव जोधपुर में स्थित है।
इनका स्मारक स्थल कोलूमंड गांव में बना हुए है।
यहां पर प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला भरता है।
यहां पर इनका प्रतीक चिन्ह भाला लिए अश्वरोही प्रतिमा ओर बाई और झुकी हुई पाग है।
इनकी घोड़ी का नाम केसर कालमी था।
मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊंट लाने का श्रेय पाबूजी को जाता है।
रेबारी जाती पाबू जी को अपना आराध्य देव मानती है।
ऊंट के बीमार होने पर पाबू जी की पूजा की जाती है।
पाबूजी को प्लेग रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है।
पाबूजी के पावडे रेबारी जाती के लोग माठ वाद्ययंत्र से गाते है तथा पाबू जी की पड़ नायक जाती के भेापो द्वारा रावनहत्या द्वारा गायी जाती है।
इनके प्रमुख साथी हरमल, चांदी, डेमा थे।
पाबूजी की जीवनी पाबुप्रकाश आसिया मोडजी ने लिखी थी।
तेजाजी राजस्थान के प्रमुख आराध्य देव है।
इनका जन्म 1074 ई में नागौर जिले खरनाल / खरन्याला में हुआ था।
इनके पिता का नाम ताहड़ जी ओर माता का नाम राजकुंवरी था।
तेजाजी की पत्नी का नाम पेमल दे था।
तेजाजी का ससुराल पनेर अजमेर था यह पर तेजाजी का मंदिर स्थित है इस मंदिर का पुजारी माली जाती का होता है।
इनकी घोड़ी का नाम लिलन था।
यह राजस्थान में सर्प देवता ओर गोरक्षक के रूप में पूजा जाते है।
तेजाजी के मंदिर में पुजारी कुम्हार जाती के होते है।
इनके पुजारी घोडला कहलाते है।
इनके चुबतरेे को थान कहते है।
तेजाजी ने लाछा गुजरी की गायों को मेर के लोगो से छुड़ाने में अपने जीवन का बलिदान के दिया था।
सेंदरिया अजमेर में तेजाजी को सर्प ने ड्सा था।
सुरसुरा - यहां पर तेजाजी की सर्पदंश से मृत्यु हुई थी।
तेजाजी पशु मेला परबतसर नागौर में लगता है।
तेजाजी को काला ओर बाला का देवता कहा जाता है।
बांसी दुगारी - बूंदी
परबतसर - नागौर
मेहा जी गोरक्षक, धर्म के मार्ग पर चलने वाले थे इसलिए इन्हे लोक देवता के रूप में पूजा जाता है।
इनके घोड़े का नाम किरड़ काबरा था।
इनका मंदिर बापनी जोधपुर में स्थित है।
यहां पर भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को मेला भरता है।
गुर्जर जाति इन्हे विष्णु भगवान का अवतार मानती है।
इनका जन्म 1300 ई में भीलवाड़ा जिले के आसींद तहसील में गोटा दड़ावत स्थान पर हुआ ।
इनका मूल नाम उदय सिंह था।
इनके पिता का नाम सवाई भोज ओर माता का नाम सेडू खेटानी था।
इनकी पत्नी का नाम पीपल दे था।
देवनारायण जी के घोड़े का नाम लीलाधर था।
इनकी समाधि देवमाली ब्यावर में स्थित है।
राजस्थान की पड़ गुर्जर जाति के भॊपो द्वारा गायी जाती है। यह पड़ राजस्थान की सबसे बड़ी पड़ है। यह जंतर वाद्ययंत्र द्वारा गायी जाती है।
देवनारायण जी की पड़ पर राजस्थान सरकार द्वारा डाक टिकट भी जारी किया हुआ है।
देवनारायण जी का प्रमुख मंदिर आसींद भीलवाड़ा में स्थित है यहां पर मंदिर में ईटो की पूजा की जाती है।
देवनारायण जी एक मंदिर देवधाम जोधपुरीया टोंक जिले में स्थित है।
यह मेड़ता के राव जयमल के छोटे भाई राव आस सिंह के पुत्र थे।
मीरा बाई इनकी बुआ थी।
वीर कल्लाजी ने 1568 ई में अकबर की सेना के साथ घायल जयमल सिसोदिया को कंधों पर बैठाकर युद्ध किया था इसलिए उन्हें चार हाथ वाले देवता कहा जाता है।
इनके गुरु भैरवनाथ थे इनकी कुलदेवी नागणेची माता थी।
वीर कल्लाजी का प्रमुख मंदिर सावलिया डूंगरपुर में स्थित है इस मंदिर में काले पत्थर की मूर्ति है मूर्ति ओर केसर ओर अफिम चढाई जाती है।
वीर कल्लाजी की प्रमुख पीठ रनेला चित्तौड़गढ़ में स्थित है।
इनके सर्वाधिक मंदिर वागड़ प्रदेश में है।
वीर कल्लाजी की छतरी चित्तौड़ दुर्ग में बनी हुई है।
इनके भोपा सर्प दंश के रोगी का जहर मुंह से चूसकर बाहर निकलते हैं
इनके यहां पर सफेद रंग का ध्वज फहराया जाता है।
यह शस्त्र विद्या में निपुण थे।
सांथू गांव में फत्ता जी प्रमुख मंदिर है।
यहां प्रतिवर्ष भाद्रपद सुदी नवमी को मेला लगता है।
इनके पिता का नाम रामनारायण ओर माता का नाम चंदनी देवी था।
इनके गुरु का नाम भुरा था।
इनका मंदिर झोरड़ा में स्थित है
यह मूर्ति गांव के बाहर मुख्य सड़क पर प्रतिष्ठित की जाती है।
इन्हे बरसात के देवता कहा जाता है।
यह गोरक्षक के रूप में पूजे जाते है।
मुस्लिम लुटेरों से गाये छुड़ाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे।
पनराजसर गांव में हरवर्ष दो बार मेले का आयोजन होता है।
इनका जन्म 1358 ई में हुआ था।
इनके पिता का नाम रावण सलखा था तथा माता का नाम जागीदे था।
यह राज पाट को त्यागकर तिलवाड़ा बाड़मेर में अपना भक्ति केंद्र बनाते है। यही पर इनकी समाधि है।
यहां पर प्रतिवर्ष राव मल्ली नाथ जी का पशु मेला यही पर आयोजित होता है।
उन्होंने पाबूजी की मृत्यु का बदला जिंदराव खींची को मारकर लिया था।
इनका प्रमुख पूजा स्थान कोलूमंड गांव में है।
इनका दूसरा मंदिर बीकानेर सिंभूदडा में है।
रुपनाथ जी हिमाचल में बालकनाथ के रूप में पूजे जाते है।
इनका मूल नाम गांगदेव राठौड़ था।
इनके पिता का नाम बिरमदेव था
इनके गुरु का नाम जालंधरनाथ था।
तल्लीनाथ नाथ जी जालोर जिले के प्रमुख लोकदेवता है।
इनका प्रमुख मंदिर पंचोटा गांव में जालोर में पंचमुखी पहाड़ी पर स्थित है।
इन्हे पशु चिकित्सक का ज्ञान था।
इनका प्रमुख मंदिर नगला जहाज भरतपुर में स्थित है।
रामदेव जी - श्री कृष्ण भगवान
पाबू जी - लक्ष्मण भगवान
देवनारायण जी - विष्णु भगवान
वीर कल्लाजी - शेषनाग
बाबा रामदेव जी
उपनाम - रूणेचा रा धनी, रामसापीर, लीले घोड़े वाले बाबा
बाबा रामदेव राजस्थान के पंच पीरो में आते है।
इनका जन्म 1405 ई में बाड़मेर की शिव तहसील के उडूकाश्मीर में हुआ था।
बाबा रामदेव के पिता का नाम अजमाल जी तंवर ओर माता का नाम मेंणादे था।
इनकी पत्नी का नाम नेतल दे था इनका विवाह अमरकोट पाकिस्तान में हुआ था।
बाबा रामदेव ने बाल्यावस्था में भैरव राक्षक का वध किया था।
इनकी घोड़ी का नाम लिलन था।
बाबा रामदेव के गुरु बालीनाथ जी थे इनका मंदिर मसूरिया पहाड़ी जोधपुर में बना हुआ है।
बाबा रामदेव ने छुआछूत, उंच नीच का विरोध किया था।
बाबा रामदेव ने 1458 ई में जीवित समाधि रूणेचा में ली थी। इनकी समाधि पर भाद्रपद शुक्ल पक्ष की दूज को विशाल मेले का आयोजन होता है।
रामदेव के चरण चिन्ह की पूजा होती है जिन्हे पगल्या कहा जाता है।
इनके मेले का प्रमुख आकर्षण तेरहताली नृत्य है।
रामदेव जी ने कामडिया पंथ की शुरुआत की थी।
रामदेव जी के मंदिर को देवता कहा जाता है, मंदिर पर 5 रंग की ध्वजा फहराई जाती है उसे नेजा कहा जाता है।
बाबा रामदेव द्वारा रचित काव्य चौबीस बनिया है।
रामदेव के जागरण को जम्मा कहा जाता है।
रामदेव जी के प्रमुख मंदिर
रामदेवरा - रूणेचा जैसलमेरमसूरिया पहाड़ी - जोधपुर
बिराठिया - पाली
खुंडियास - अजमेर
छोटा रामदेवरा गुजरात में स्थित है।
गोगाजी चौहान
गोगा जी चौहान राजस्थान के पंच पीरो में प्रमुख है।
इनका जन्म वि. स. 946 को ददरेवा चूरू में हुआ था।
इनके पिता का नाम जेवर जी चौहान ओर माता का नाम बाछल देवी था।
इनके गुरु गोरखनाथ जी थे।
गोगाजी का विवाह राजकुमारी केलम दे से होना तय हो गया था पर विवाह से पूर्व ही केलमदे को सर्प ने डस लिया तब गोगाजी ने अपने मंत्रो से केलम दे को बचाया था।
गोगाजी को सांपो के देवता के रूप में पूजा की जाती है।
कायमखानी समाज इन्हे जाहरपीर ( देवता के सम्मान ) के नाम से पूजा करता है।
गोगाजी ने महमूद गजनवी से युद्ध किया था इस युद्ध में गोगाजी वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
युद्धभूमि में लड़ते हुए जहां पर गोगाजी का सिर गिरा वो स्थान शीशमेडी ददरेवा ( चूरू ) ओर जहां पर धड़ गिरा वो स्थान धुरमेडी ( नोहर हनुमानगढ़ ) कहलाया।
इस युद्ध में गोगा जी ने बिना सिर के गजनवी की सेना से युद्ध किया था तब गजनवी ने कहा कि यह साक्षात जाहरपीर के समान लड़ रहा है।
गोगाजी का प्रमुख स्थान गोगामेड़ी नोहर में है यहां पर बना मंदिर मकबरेनूमा है इसके मुख्य दरवाजे पर बिस्मिलाह अंकित है।
मंदिर में पुजारी हिन्दू ओर मुसलमान दोनों होते है।
यहां पर प्रतिवर्ष गोगानवमी को मेला लगता है।
गोगा जी का थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है इन पर एक कहावत है -
गांव गांव खेजड़ी ओर गांव गांव गोगो।
गोगाजी की ओल्डी सांचौर जालोर में स्थित है।
हड़बू जी सांखला
हड़बूजी योगी ओर शगुन शास्त्र में ज्ञाता थे ।इनको लक्ष्मण जी का अवतार माना जाता है।
इनका जन्म भूंडेल (नागौर) में हुआ।
इनके गुरु का नाम बालीनाथ था।
यह जोधपुर के राजा राव जोधा के समकालीन थे।
हड़बूजी रामदेव जी के मोसरे भाई थे।
इनका प्रमुख पूजा स्थल बेंगठी गांव जोधपुर में स्थित है।
यहां पर हड़बूजी की बैलगाड़ी की पूजा होती है, इसी बैलगाड़ी से हड़बूजी पंगु गायों के लिए हरा चारा लाते थे।
इनके मंदिर में पुजारी सांखला राजपूत होते है।
पाबू जी राठौड़
इनका जन्म 1239 ई में कोलुमंड जोधपुर में हुआ था।
इनके पिता का नाम धांधल की राठौड़ तथा माता का नाम कमलादे था।
इनका विवाह सुप्यार दे के साथ हुआ था।
विवाह मंडप से ही देवल चारणी की गायों को अपने बहनोई से छुड़ाते समय युद्ध में वीर गति को प्राप्त हो गए है।
इनकी समाधि देचू गांव जोधपुर में स्थित है।
इनका स्मारक स्थल कोलूमंड गांव में बना हुए है।
यहां पर प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला भरता है।
यहां पर इनका प्रतीक चिन्ह भाला लिए अश्वरोही प्रतिमा ओर बाई और झुकी हुई पाग है।
इनकी घोड़ी का नाम केसर कालमी था।
मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊंट लाने का श्रेय पाबूजी को जाता है।
रेबारी जाती पाबू जी को अपना आराध्य देव मानती है।
ऊंट के बीमार होने पर पाबू जी की पूजा की जाती है।
पाबूजी को प्लेग रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है।
पाबूजी के पावडे रेबारी जाती के लोग माठ वाद्ययंत्र से गाते है तथा पाबू जी की पड़ नायक जाती के भेापो द्वारा रावनहत्या द्वारा गायी जाती है।
इनके प्रमुख साथी हरमल, चांदी, डेमा थे।
पाबूजी की जीवनी पाबुप्रकाश आसिया मोडजी ने लिखी थी।
तेजाजी
इनका जन्म 1074 ई में नागौर जिले खरनाल / खरन्याला में हुआ था।
इनके पिता का नाम ताहड़ जी ओर माता का नाम राजकुंवरी था।
तेजाजी की पत्नी का नाम पेमल दे था।
तेजाजी का ससुराल पनेर अजमेर था यह पर तेजाजी का मंदिर स्थित है इस मंदिर का पुजारी माली जाती का होता है।
इनकी घोड़ी का नाम लिलन था।
यह राजस्थान में सर्प देवता ओर गोरक्षक के रूप में पूजा जाते है।
तेजाजी के मंदिर में पुजारी कुम्हार जाती के होते है।
इनके पुजारी घोडला कहलाते है।
इनके चुबतरेे को थान कहते है।
तेजाजी ने लाछा गुजरी की गायों को मेर के लोगो से छुड़ाने में अपने जीवन का बलिदान के दिया था।
सेंदरिया अजमेर में तेजाजी को सर्प ने ड्सा था।
सुरसुरा - यहां पर तेजाजी की सर्पदंश से मृत्यु हुई थी।
तेजाजी पशु मेला परबतसर नागौर में लगता है।
तेजाजी को काला ओर बाला का देवता कहा जाता है।
प्रमुख मंदिर
खरनाल - नागोर सबसे बड़ा पूजा स्थलबांसी दुगारी - बूंदी
परबतसर - नागौर
मेहा जी मांगलिया
यह मांगलिया जाती के इष्टदेव माने जाते हैं।मेहा जी गोरक्षक, धर्म के मार्ग पर चलने वाले थे इसलिए इन्हे लोक देवता के रूप में पूजा जाता है।
इनके घोड़े का नाम किरड़ काबरा था।
इनका मंदिर बापनी जोधपुर में स्थित है।
यहां पर भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को मेला भरता है।
देवनारायण जी
ये गुर्जर जाती के आराध्य देव है।गुर्जर जाति इन्हे विष्णु भगवान का अवतार मानती है।
इनका जन्म 1300 ई में भीलवाड़ा जिले के आसींद तहसील में गोटा दड़ावत स्थान पर हुआ ।
इनका मूल नाम उदय सिंह था।
इनके पिता का नाम सवाई भोज ओर माता का नाम सेडू खेटानी था।
इनकी पत्नी का नाम पीपल दे था।
देवनारायण जी के घोड़े का नाम लीलाधर था।
इनकी समाधि देवमाली ब्यावर में स्थित है।
राजस्थान की पड़ गुर्जर जाति के भॊपो द्वारा गायी जाती है। यह पड़ राजस्थान की सबसे बड़ी पड़ है। यह जंतर वाद्ययंत्र द्वारा गायी जाती है।
देवनारायण जी की पड़ पर राजस्थान सरकार द्वारा डाक टिकट भी जारी किया हुआ है।
देवनारायण जी का प्रमुख मंदिर आसींद भीलवाड़ा में स्थित है यहां पर मंदिर में ईटो की पूजा की जाती है।
देवनारायण जी एक मंदिर देवधाम जोधपुरीया टोंक जिले में स्थित है।
वीर कल्लाजी
उपनाम - चार हाथ वाले लोक देवता, योगी, कमधन, केहर कल्याण, शेषनाग का अवतार
वीर कल्लाजी का जन्म 1544 ई में मेड़ता में हुआ था।यह मेड़ता के राव जयमल के छोटे भाई राव आस सिंह के पुत्र थे।
मीरा बाई इनकी बुआ थी।
वीर कल्लाजी ने 1568 ई में अकबर की सेना के साथ घायल जयमल सिसोदिया को कंधों पर बैठाकर युद्ध किया था इसलिए उन्हें चार हाथ वाले देवता कहा जाता है।
इनके गुरु भैरवनाथ थे इनकी कुलदेवी नागणेची माता थी।
वीर कल्लाजी का प्रमुख मंदिर सावलिया डूंगरपुर में स्थित है इस मंदिर में काले पत्थर की मूर्ति है मूर्ति ओर केसर ओर अफिम चढाई जाती है।
वीर कल्लाजी की प्रमुख पीठ रनेला चित्तौड़गढ़ में स्थित है।
इनके सर्वाधिक मंदिर वागड़ प्रदेश में है।
वीर कल्लाजी की छतरी चित्तौड़ दुर्ग में बनी हुई है।
केसरिया कुंवर जी
यह गोगा जी के पुत्र थे।इनके भोपा सर्प दंश के रोगी का जहर मुंह से चूसकर बाहर निकलते हैं
इनके यहां पर सफेद रंग का ध्वज फहराया जाता है।
वीर फत्ता जी
वीर फत्ता जी का जन्म सांथू गांव जालोर में हुआ था।यह शस्त्र विद्या में निपुण थे।
सांथू गांव में फत्ता जी प्रमुख मंदिर है।
यहां प्रतिवर्ष भाद्रपद सुदी नवमी को मेला लगता है।
हरिराम बाबा
इनका जन्म वी. स. 1959 को हुआ था।इनके पिता का नाम रामनारायण ओर माता का नाम चंदनी देवी था।
इनके गुरु का नाम भुरा था।
इनका मंदिर झोरड़ा में स्थित है
मामा देव
इनकी मूर्ति काष्ठ की बनी होती है।यह मूर्ति गांव के बाहर मुख्य सड़क पर प्रतिष्ठित की जाती है।
इन्हे बरसात के देवता कहा जाता है।
पनराज जी
इनका जन्म जैसलमेर में हुआ था।यह गोरक्षक के रूप में पूजे जाते है।
मुस्लिम लुटेरों से गाये छुड़ाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे।
पनराजसर गांव में हरवर्ष दो बार मेले का आयोजन होता है।
राव मल्लीनाथ जी
राव मल्ली नाथ जी मारवाड़ के शासक थे।इनका जन्म 1358 ई में हुआ था।
इनके पिता का नाम रावण सलखा था तथा माता का नाम जागीदे था।
यह राज पाट को त्यागकर तिलवाड़ा बाड़मेर में अपना भक्ति केंद्र बनाते है। यही पर इनकी समाधि है।
यहां पर प्रतिवर्ष राव मल्ली नाथ जी का पशु मेला यही पर आयोजित होता है।
रुपनाथ जी झरडा
यह पाबूजी के बड़े भाई के पुत्र थे।उन्होंने पाबूजी की मृत्यु का बदला जिंदराव खींची को मारकर लिया था।
इनका प्रमुख पूजा स्थान कोलूमंड गांव में है।
इनका दूसरा मंदिर बीकानेर सिंभूदडा में है।
रुपनाथ जी हिमाचल में बालकनाथ के रूप में पूजे जाते है।
तल्लिनाथ जी
इनका जन्म शेरगढ़ जोधपुर में हुआ था।इनका मूल नाम गांगदेव राठौड़ था।
इनके पिता का नाम बिरमदेव था
इनके गुरु का नाम जालंधरनाथ था।
तल्लीनाथ नाथ जी जालोर जिले के प्रमुख लोकदेवता है।
इनका प्रमुख मंदिर पंचोटा गांव में जालोर में पंचमुखी पहाड़ी पर स्थित है।
देव बाबा
यह ग्वालों के आराध्य देव कहलाते है।इन्हे पशु चिकित्सक का ज्ञान था।
इनका प्रमुख मंदिर नगला जहाज भरतपुर में स्थित है।
राजस्थान में लोकदेवता को काफी पूजा जाता है और इनसे जुड़े कई सवाल प्रतियोगी परीक्षा में आते है धन्यवाद आपने इसके बारे जानकारी दी
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