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Sunday 24 May 2020

राजस्थान की मृदा

                    राजस्थान की मृदा


मृदा

भू - पटल पर पाए जाने वाले असंगठित कनों के आवरण को मृदा कहते है।
मृदा शब्द की उत्पति लैटिन भाषा के शब्द सोलम से हुई है जिसका अर्थ है फर्श।
विज्ञान की वह शाखा जिसमे मृदा सम्बन्धी अध्ययन किया जाता है उसे पेड्रोलॉजी कहते है तथा मृदा के निर्माण की प्रक्रिया पेड्रोजीनेसिस कहलाती है।

 राजस्थान में मृदा का प्रकार

1. राजस्थान में वैज्ञानिक वर्गीकरण के आधार पर राजस्थान में 5 प्रकार की मृदा पाई जाती है।


काली मिट्टी (वर्टीसोल) 
हाड़ौती के पठार क्षेत्र में यह मिट्टी पाई जाती है।
यह मिट्टी कपास के लिए उपयोगी होती है इस मिट्टी में सर्वाधिक जल धारण करने की क्षमता होती है। इस मिट्टी में लौह व एल्युमिनियम तत्वों की प्रधानता होती है।

लाल मृदा (इंसेप्टीसोल) 
अरावली पर्वतमाला प्रदेश में लाल मिट्टी पाई जाती है।
इस मिट्टी में लाल रंग की प्रधानता इसमें उपस्थित लौह ऑक्साइड की प्रधानता के कारण होता है। यह मिट्टी मक्का की फसल के लिए उपयोगी होती है। इसमें ह्यूमस तथा नाइट्रोजन की अधिकता रहती है।

जलोढ मृदा ( ऐल्फिसोल)
पूर्वी मैदानी प्रदेश में जलोढ मृदा पाई जाती है। यह सर्वाधिक उपजाऊ मृदा होती है। इस मृदा में कैल्शियम तथा फास्फोरस की अधिकता होती है। इस मृदा में ह्यूमस तथा नाइट्रोजन की कमी होती है। इस मृदा में नाइट्रोजन स्थिति करण जल्दी होता है।

रेतीली बलुई मृदा (एंटीसोल)
पश्चिमी मरुस्थल प्रदेश  में यह मृदा पाई जाती है। 
राजस्थान में इस मृदा का सर्वाधिक विस्तार है।
इस मृदा में न्यूनतम जल धारण क्षमता होती है।

शुष्क मृदा (एरिडीसोल)
शुष्क जलवायु प्रदेश में इस मृदा की प्रधानता रहती है। जिसमे (चूरू, सीकर, झुंझनू, नागौर) प्रमुख है।

2. कृषि में उपलबधता उपयोगिता व प्रधानता के आधार पर राजस्थान में नौ प्रकार की मृदा पाई जाती है।


लाल लोमि मृदा - यह उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ में पाई जाती है।
लाल काली मृदा - यह कोटा, बूंदी, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा में पाई जाती है।
लाल पीली मृदा - भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक, सवाई माधोपुर क्षेत्र में पाई जाती है। यह बनास बेसिन में पाई जाती है।

भूरी दोमट मृदा - यह पाली, सिरोही, जालोर क्षेत्र में पाई जाती है।
भूरी रेतीली मृदा - यह मृदा नागौर, जोधपुर, सीकर, झुंझनू क्षेत्र में पाई जाती है।
मध्यम काली मृदा - यह मृदा हाड़ौती का पठार क्षेत्र में पाई जाती है।
जलोढ मृदा - इसकी प्रधानता पूर्वी मैदानी प्रदेश में होती है।

रेतीली बलुई मृदा - पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश इस मृदा की अधिकता होती है
लवणीय या क्षारिय मृदा - खारे पानी की झीलो के आसपास के क्षेत्र बाड़मेर, नागौर, जैसलमेर, बीकानेर ।

3. निर्माण के आधार पर मृदा का वर्गीकरण

भारतीय कृषि अनुसंधान नई दिल्ली द्वारा निर्माण के आधार पर राजस्थान की मृदा को 8 भागों में विभाजित किया ।

जलोढ मृदा - इसे दोमट मिट्टी या कांप मिट्टी भी कहते है।
इस मृदा का निर्माण नदियों द्वारा लाई गई अवसाद के जवाव से होता है।
विस्तार क्षेत्र - पूर्वी मैदान प्रदेश, घग्घर का मैदान (हनुमानगढ़, गंगानगर), छप्पन का मैदान प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, कांठल का मैदान प्रतापगढ़, रोही का मैदान जयपुर, भरतपुर।
वर्गीकरण - 
दलदली जलोढ मृदा को तराई कहते है।
लूणी बेसिन की प्राचीन जलोढ मृदा बांगर कहलाती है।
चंबल बेसिन की नवीनतम जलोढ मृदा खादर कहलाती है।

काली मृदा 
इसे कपास मृदा / रेगुर मृदा भी कहते है
इस मृदा का निर्माण ज्वालामुखी क्रिया से निर्मित लावा के विखंडन से होता है
विस्तार क्षेत्र - हाड़ौती का पठार
काली मिट्टी के काले रंग का प्रमुख कारण लौह तथा एल्युमिनियम के टिटेनो फेरस मैग्नेटाइट यौगिक होता है।
काली मिट्टी में लौह तथा एल्युमिनियम की प्रधानता होती है।
काली मिट्टी में जल धारण क्षमता सर्वाधिक होती है।
काली मिट्टी कपास के लिए उपयोगी होती है

रेतीली बलुई मिट्टी -  बालू रेत
इस मृदा का निर्माण टेथीस सागर के अवशेष के रूप हुआ था
विस्तार क्षेत्र - पश्चिमी राजस्थान
विशेषता -
रेतीली बलुई मृदा की जल धारण क्षमता न्यूनतम होती है।

क्षारीय मृदा - लवणीय मृदा
इस मृदा का निर्माण मृदा में उपस्थित लवणीय पदार्थो की अधिकता के कारण होता है।
विस्तार क्षेत्र-
खारे पानी की झील के आसपास का क्षेत्र
विशेषता -
यह सबसे अनुपजाऊ मृदा होती है।

लाल मृदा - पर्वतीय मृदा
इस मृदा का निर्माण पर्वतों के उपरी परत के अपक्षरन से निर्मित मृदा से होता है
विस्तार क्षेत्र -
अरावली पर्वतीय प्रदेश
विशेषता -
इसमें लाल रंग का प्रमुख कारण लौह ऑक्साइड की अधिकता के कारण होता है।
लाल मृदा में नाइट्रोजन तथा हयुमस की अधिकता होती है।
मक्का के लिए उपयोगी फसल होती है

लाल पीली मृदा - भूरी मृदा
इस मृदा का निर्माण ग्रेनाइट तथा नीस चट्टानों के अपक्षरण से होता है।
विस्तार क्षेत्र - बनास बेसिन में प्रमुखता
मोटे अनाज ज्वार के लिए उपयोगी

लेटेराइट मृदा 
इस मृदा का निर्माण उच्च तापमान तथा उच्च वर्षा क्षेत्रों में आकस्मिक जलवायु परिवर्तन से होता है।
विस्तार - केरल तमिलनाडु
यह मृदा नारियल काजू कहवा चाय में उपयोगी

पीट मृदा - जैविक मृदा
इस मृदा का निर्माण दलदली मृदा में जैविक पदार्थो के मिलने से होता है। यह मृदा डेल्टाई प्रदेश में पाई जाती है।
इस मिट्टी के मंग्रोव वनस्पति होती है।

अन्य मृदा
रेवरिना मृदा - गंगानगर, गेहूं का सर्वधिक उत्पादन
सिरोजम मृदा - नागौर
केल्सी ब्राउन - जैसलमेर, बीकानेर
नॉन केल्सि ब्राउन - जयपुर, भरतपुर

                       महत्वपूर्ण तथ्य
मिट्टी की रेंगती मृत्यु मृदा अपरदन को कहते है।
मिट्टी में क्षारीयता/लवणीयता को दूर करने के लिए जिप्सम का उपयोग किया जाता है।
मिट्टी में अम्लीयता को दूर करने के लिए रॉक फास्फेट का उपयोग किया जाता है।
शुद्ध मिट्टी का ph मान 7 होता है। क्षारीय मिट्टी का ph 7 से अधिक व अम्लीय मिट्टी का ph 7 से कम होता है।
राजस्थान में सर्वाधिक अपरदन वायु से होता है



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